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बस्ती :शहर के चौराहो को छोड़ ग्रामीण क्षेत्रो में रोमियो के तलाश में जुटी टीम, कार्यो पर उठ रहे है सवाल


 शिकायत के बाद खुली एंटी रोमियो की पोल एसपी ने लगाई फटकार
शिवेश शुक्ला 
 बस्ती :आजकल मजनुओं की भरमार है। गली गली में इनकी मौजूदगी देखी जा सकती है। गर्ल्स कालेज के गेट पर, पार्को के किनारे या फिर वन विहार या नुक्कड़ों पर। इससे पहले शायद ही बस्ती जनपद में कभी इनकी पैदावार इतनी रही हो। अब तक हजारों मजनू माफी मांग चुके हैं, सैकड़ों बीच चौराहे और सार्वजनिक स्थानों पर कान पकड़कर उठ बैठ चुके हैं। ये तो एण्टी रोमियो का डर है वरना अब तक बस्ती जिला मजनुओं के नाम पर अपनी पहचान बना चुका होता।

ये हम नहीं आंकड़े कह रहे हैं। पिछले छः महीने के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। कई राज्यों के साथ ही उत्तर प्रदेश के करीब 30 जिलों से हमारे पास खबरें आती हैं या फिर हमारी उन जिलों की खबरों पर नजर रहती है, जितने मजनू बस्ती में हैं उतने और कहीं नही और न ही एण्टी रोमियो दस्ता दूसरी जगहों पर इतना कहीं सक्रिय है। दबी जुबान से सम्भ्रान्त परिवारों के लोग अपना दर्द बयां करते हैं। अनेकों सम्भ्रान्त परिवारों के किशोर बेवजह चौराहों पर अपमानित हो चुके हैं। माफी मांगकर अपना सम्मान बचाया और चलते बने। देखा जाये तो छात्र जीवन की सामान्य गलतियों को छोड़कर किशोरों द्वारा छात्राओं को परेशान करने के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं।

अपवादों को छोड़कर बस्ती में शायद ही कभी बड़ी बात हुई हो जब किसी छात्र ने अपने मां बाप का सिर नीचा करने वाली हरकत की हो। लेकिन जबसे एण्टी रोमियो दस्ते का गठन किया गया है छात्रों को शक की नजर से देखा जा रहा है। को एजुकेशन का जमाना है, पाबंदियां जरूरी हैं लेकिन जरूरत से ज्यादा पाबंदियां खतरनाक हो सकती है। छात्र छात्राओं पर शक करने की बजाय उन्हे जिम्मेदार बनाया जाये, बताया जाये कि ये उनकी पढ़ लिखकर कुछ बनने की उमर है। चूक गये तो सारी उम्र संघर्ष में बीत जायेगी। उम्र ढलने पर अहसास होगा कहां जाना था और कहां पहुंच गये। आजकल महिलाओं, किशोरियों यहां तक कि मासूम बच्चियों के साथ दुराचार की घटनायें हो रही हैं।

ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले कम पढ़े लिखे, मजदूर वर्ग के लोग ज्यादा होते हैं। छात्र छात्राओं को रोमियो जूलियट समझने की बजाय उन्हे ऐसे लोगों पर नजर रखने की जिम्मेदारी दी जाये, तो बदलाव दिखने लगेगा। कालेज के गेट पर खड़े होकर यह देखने से कि कौन किसे ताक रहा है बेहतर होगा छात्राओं को इस बात का प्रशिक्षण दिया जाये कि वे सामने वाले की आखों में दरिंदगी उतर आये इससे पहले वे उन्हे पहचान लें और हर तरह के सुरक्षा चक्र का इस्तेमाल कर खुद को बचा लें। मासूम बच्चियों से लेकर माध्यमिक कक्षाओं तक की छात्राओं को कक्षा में जाकर गुड टच बैड टच की जानकारी दी जाये। अभियान के तौर पर ऐसा लगातार किया जाये तो शायद एण्टी रोमियो दस्ते की जरूरत ही न पड़े।

सही दिशा में काम करना होगा। यदि ये सही दिशा होती तो प्रदेश में एण्टी रोमियो की इतनी खौफ अब तक कायम हो चुकी होती कि महिलाओं और मासूम बच्चियों संग होने वाली घटनायें कम हो जातीं। जानकारी ही बचाव है। छात्रायें, अभिभावक और मासूम बच्चे यदि सहज ही लोगों पर विश्वास करना छोड़ दें तो घटनाओं में कमी आ सकती है। दरिंदगी से पहले लोग विश्वास में लेते हैं चाहे वह अभिभावक हो या बेटियां। विश्वास मे ही धोखा छिपा होता है। ये बातें बेटियों को बताकर उन्हे आगाह करना होगा। एण्टी रोमियो दस्ते का लक्ष्य माफीनामा भरवाकर मजनुओं की लम्बी लिस्ट बनाना नही बल्कि नतीजों पर भी नजर रखनी होगी। वरना चार पांच साल बाद पूरा शहर मजनू हो जायेगा और हादसे होते रहेंगे।


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