इसी दिन भगवान बलराम की जयंती भी मनाई जाती है
रिपोर्ट बनारसी चौधरी
बेलहर, संतकबीरनगर। सावन माह में छठवे दिन पर मनाए जाने वाले तिन छठी के व्रत को महिलाओं द्वारा पूरे श्रद्धा के साथ पूजन किया जाता है। प्रकृति के साथ पेड़पौधों में मुज की पूजन अर्चन को बेहद श्रद्धा के साथ किया जाता है। इस व्रत के द्वारा माताएं अपने पुत्रों के लंबी उम्र की कामना किया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्य में इसे अलग-अलग नामो से इस त्योहार को जाना जाता है। इसे चंदन छठ, तिन्नी छठ, हल छठ, राधन छठ, ललही छठ, कमर छठ आदि अनेकों नामो से जाना जाता है। सावन के बाद भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी मनाई जाती है। हलषष्ठी जिसे हलछठ भी कहा जाता है। इस साल यह 9 अगस्त दिन रविवार को मनाई जा रही है। यह भगवान श्री कृष्ण के भाई दाऊ की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। कुछ लोग बलराम जी को भगवान विष्णु का आठवां अवतार मानते हैं। जबकि कुछ इसके विपरित यह मानते हैं कि बलराम जी भगवान विष्णु के शेषनाग के अवतार हैं। जो हमेशा भगवान विष्णु की सेवा में रहते हैं। इस तरह से अनेकों कथाएं भी इस दिन पर प्रचलित है। पूर्वांचल में कई जगहों पर माताएं अपने पुत्र के लिए कठिन व्रत रखती है। व्रती महिलाओं के द्वारा व्रत के दौरान तिन्नी चावल एवं भैंस के दूध का इस्तेमाल करती हैं। इस दिन गाय का दूध और दही उपयोग नहीं की जाती है। व्रत के नियमानुसार इस दिन जो महिलाएं व्रत करती हैं वो महुआ के दातुन से दांत साफ करती हैं। इस व्रत का समापन भैंस के दूध से बने दही और महुवा को पलाश के पत्ते पर खाकर किया जाता है। दिन भर निर्जला व्रत किया जाता है और शाम को पसही के चावल या महुए का लाटा बनाकर व्रत का पारण किया जाता है। जिससे यह व्रत की प्रक्रिया पूर्ण होती है। बेलहरकला क्षेत्र में भी अनेकों जगहों पर आज के दिन क्षेत्र में जगह जगह पर मूज के पौधों पर पूजन अर्चन कर इस व्रत को पूर्ण किया गया।
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