सरोवर पर पूजन करती महिलाएं
अखिलेश्वर तिवारी
भारतवर्ष तीज त्योहारों तथा भिन्न भिन्न के परंपराओं को संजो कर रखने वाला देश है । भारतीय संस्कृति के तहत तमाम ऐसी परंपराएं हैं जो समाज के उन लोगों को आईना दिखाने का काम करती हैं जो लोग बालक तथा बालिकाओं के बीच भेद रखने का सोच रखते हैं । हमारे मनीषियों द्वारा उन्हीं परंपराओं को जीवंत रूप देने के लिए उन्हें व्रत व पूजन के रूप में परिवर्तित किया गया था । ऐसे ही व्रत की परंपराओं में एक है मनचिंता व्रत जो प्राय: भैया दूज के दूसरे दिन मनाया जाता है । मान्यता है कि मनचिंता व्रत में लड़का तथा लड़की के भेद को समाप्त करने की शिक्षा दी गई है । इस व्रत को करने वाली महिलाएं अपने सुहाग की सुरक्षा की कामना कर के व्रत का पूजन करती हैं, परंतु उसके पीछे जो कहानी है उसमें लड़का लड़की में से एक के चयन पर लड़की के चयन को प्राथमिकता देने की कहानी जुड़ी हुई है।
जानकारी के अनुसार मनचिंता व्रत की प्रचलित कहानी एक ब्राम्हण परिवार से जुड़ा है जिसके कोई संतान नहीं थी । संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्मण परिवार ने 12 वर्षों से अधिक समय तक मां गंगा की आराधना किया। ब्राह्मण दंपत्ति के आराधना से प्रसन्न होकर गंगा माता प्रगट होकर वरदान मांगने को कहा, जिस पर ब्राह्मण दंपति ने संतान प्राप्ति की इच्छा जाहिर की । मां गंगा ने सुशील वह संस्कारी लड़की अथवा असंस्कारी पुत्र में से एक के चुनाव का शर्त रखा । ब्राह्मण दंपति ने मां गंगा से सुशील संस्कारी पुत्री की कामना की, जिसके बाद मां गंगा ने मनचिंता नाम की सुशील व अति सुंदर कन्या ब्राह्मण दंपत्ति को प्रदान किया, जिसने आगे चलकर अपने पति की रक्षा के लिए भगवान शंकर व माता पार्वती को प्रसन्न कर लंबी आयु का वरदान प्राप्त किया । निश्चित रूप से ऐसी कहानियां भले ही कोलकल्पित हों, परंतु आज के समय में उनका खास महत्व है । आज के समय में जब दंपत्ति लड़का तथा लड़कियों के बीच भेद कर रहे हैं और आए दिन भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं, ऐसी विपरीत परिस्थितियों में इन पारंपरिक तीज त्योहारों से जुड़े कहानियों से लोगों को सीख लेने की जरूरत है । कहानी का मूल उद्देश्य बिगड़ैल लड़के से सुशील व संस्कारी लड़की बेहतर होती है । आज जनपद के सभी क्षेत्रों में मनचिंता व्रत महिलाओं ने हर्षोल्लास के साथ मनाया । इस व्रत में व्रत धारी महिलाएं और लड़कियों द्वारा दोपहर तक निर्जल व्रत करके किसी सरोवर अथवा नदी पर जाकर मां गंगा की पूजन अर्चन किया जाता है। पूजन के बाद ही व्रत धारी महिलाएं व लड़कियां जल ग्रहण करती हैं तथा दिन में एक बार भोजन ग्रहण करके ब्रत को पूर्ण करती हैं । माना जाता है कि इस व्रत के रहने से मनवांछित मनोकामना की पूर्ति होती है । परंपरा के अनुसार इस व्रत का पूजन सीजन में तैयार हुए धान के चावल से बने आटे का पकवान व मूली अर्पित करते हुए व्रत धारी महिलाओं तथा लड़कियों द्वारा सामूहिक रूप से किसी नदी अथवा सरोवर पर पूजन अर्चन किया जाता है ।
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