Type Here to Get Search Results !

Bottom Ad

कविता :जिंदगी

बड़ी ही कठिन है डगर जिंदगी की।

अँधेरों  से  गुजरी उमर जिंदगी की।

मुझे तुमसे इतनी मुहब्बत न होती 

तुम अंबर न होते मैं धरती न होती।

मिली किस तरह से महर जिन्दगी की।।०१।।

मंजिलों के लिए लाख बंधन हैं तोड़े।

मुक्त जीवन की चाहत में रिश्ते उधेड़े।

मुझे क्यों लगी है नज़र जिन्दगी की।।०२।

कभी गिरते गिरते सभलते भी देखा।

कभी सागरों  को  उफ़नते भी देखा।

बहुत दूर रहती है सहर जिंदगी की।।०३।

गीतों को लिखती हूँ तेरे लिए ही।

आँसू  ये  पावन  भी  तेरे लिए ही।

गाती हूँ जैसे बहर जिन्दगी की।।०४।।

           एकता आर्या,कवियत्री

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad



 

Below Post Ad

5/vgrid/खबरे