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Sant kabir nagar धनघटा में धड़ल्ले से काटे जा रहे पेड़,प्रशासन रोकने में विफल



ऑक्सीजन की कमी से मचे हाहाकार से नही सीख रहे वन रेंजर
आलोक कुमार बर्नवाल
सन्तकबीरनगर। अनमोल जिदगी के लिए ऑक्सीजन के वाहक पेड़ों पर अब आरे चलने लगे हैं। नियम तो यह है कि जितने पेड़ कटेंगे, उसके दस गुना पौधे परमिट लेने वाले व्यक्ति लगाना होता है, पर यह फरमाज महज कागजों तक सीमित है। परमिट भी मानक के अनुसार नहीं दिया जा रहा है, गलत रिपोर्टिंग से हरे-भरे पेड़ काट दिए जा रहे हैं। हैंसर हो या फिर अन्य जगह। हर क्षेत्र में आएं दिन परमिट की आड़ या फिर जुगाड़ तंत्र से हरियाली पर आरा चल रहा है। वन और उद्यान विभाग का तर्क भी रहता है कि आखिर जिसने पेड़ लगाए हैं, उसकी जरूरत पर यह मदद करें, इसलिए परमिट देनी पड़ती है। पौधारोपण अभियान में रोपे जाने वाले पौधों की हालत किसी से छुपी नहीं है। काटे जाने वाले पौधों के स्थान पर नए पौधे रोपना तो दूर वन विभाग के पास इसका कोई आंकड़ा तक नहीं है। जब हैंसर रेंजर से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उनका फ़ोन बंद था। इस बारे में एसडीएम योगेश्वर सिंह ने कहा हरे पेड़ो की कटान नही होने दी जाएगी। अगर ऐसा हो रहा तो जल्द ही छापेमारी कर कार्यवाही की जाएगी।
यह है शासनादेश- हरियाली को लेकर शासनादेश है कि एक पेड़ काटने की परमिट तब दी जाएगी, जब दस पेड़ रोपने की सहमति शपथ पत्र आवेदक से ले लिया जाएगा। इसके लिए एक पेड़ के परमिट में 1250 रुपये का एनएससी (नेशनल सेविग सर्टिफिकेट) डाकघर में जमा होता है। यह धनराशि पांच पेड़ों तक होती है। एक से दस पेड़ पर 2250 रुपये लगते हैं। 200 रुपये डाकघर में जमा करने का प्रावधान है, लेकिन डाकघर 1000 से नीचे का एनएससी नहीं देती है। 138 रुपये डीएफओ के नाम बंधक होता है और 100 रुपये की सरकारी रसीद कटती है। यह एनएससी पांच साल बाद वापस तब होती है। परमिट ले वाले लोग पौधारोपित करते ही नहीं है। यही कारण है कि एनएससी डाकघरों में पड़ी रह जाती है।

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