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बौद्धधर्म में वर्षावास के संकल्प का है अलग महत्व :आचार्य राजेश चंद्रा

 

आषाढ़ी पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है वर्षावास

बुद्धविहार या किसी सार्वजनिक स्थान पर बौद्ध भिक्षु संघ के वर्षावास की व्यवस्था कर की जाती है साधना

एस के शुक्ला

प्रतापगढ़। बौद्ध भिक्षु संघ द्वारा वर्षाऋतु में नियमित रूप से एक निश्चित स्थान पर तीन माह ठहर कर वर्षावास के संकल्प का पालन करते हुए साधना करते हैं। यह वर्षावास आषाढ़ी पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। यह बातें नगर क्षेत्र के देवकली बुद्ध विहार में चल रहे वर्षावास में बतौर मुख्यतिथि शामिल होने आए समन्वय सेवा संस्थान भारत के अध्यक्ष आचार्य राजेश चन्द्रा ने शनिवार को नगर के बाबागंज स्थित एक होटल में पत्रकारों से रूबरू होते हुए कहीं। उन्होंने बौद्धधर्म में वर्षावास के संकल्प का अपना अलग महत्व बताते हुए कहा कि बुद्ध अनुयायी पहले से ही बुद्धविहार या किसी सार्वजनिक स्थान पर बौद्ध भिक्षु संघ के वर्षावास की व्यवस्था करते हैं। इस दौरान श्री चंद्रा ने सफेद वस्त्रों के साथ होने वाले बौद्ध कार्यक्रमों पर प्रकाश डालते हुए उसे मनोविज्ञान बताया। उन्होंने इस दौरान जनपद में स्थित बौद्ध बिहार स्थलों की उपेक्षा पर दु:ख प्रकट करते हुए एक सवाल के जवाब में कहा कि पूरे भारत में आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 10 प्रतिशत लोग बुद्धिस्त हैं। वर्षावास पर प्रकाश डालते हुए श्री चंद्र ने कहा कि कहा कि भगवान बुद्ध ने पहला वर्षावास मृगदायन वन सारनाथ में व्यतीत किया था। यहीं पर उन्होंने आषाढ़ मास की पूर्णिमा को पंचवर्गीय भिक्षुओं को सद्धर्म की धम्मदेशना देकर संसार के समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ पहली बार धर्मचक्र को चलाया था। इसीलिए बौद्ध धर्मावलंबी आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन को पवित्र मानते है। इस मौके पर डॉ राकेश कनौजिया ने वर्षावास के पीछे तर्क पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि वर्षा ऋतु में कई तरह के छोटे छोटे जीव जन्म लेते हैं। जो विचरण करने से पैर से दब सकते हैं। इससे जीव की हत्या होती है। इससे बचने के लिए तीन माह एक जगह व्यतीत किया जाता है। वर्षावास का प्रारंभ भगवान बुद्ध ने किया था। भगवान बुद्ध ने कहा था कि वर्षाकाल में गांवों में भिक्षाटन के लिए नहीं जाना चाहिए। पत्रकार वार्ता के दौरान प्रमुख रूप से ओम नारायण अहिरवार,वेद प्रकाश सरोज, लीलावती सरोज, सुशील कुमार दद्दू मौजूद रहे।

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