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कविता:कोहरे की चादर

वक्त है थमा थमा ,

कोहरे की चादर से ढका ढका

मै हूँ वक्त से कटा कटा

ना जाने कितने वक्त से रूका

कोहरे।।

मै  तो सोचता हूँ  सैकड़ो बाते,

तेरे साथ बीते चंद लम्हे , 

कि कभी हम मिले थे,

बागों में बहारा खिले थे

कोहरे।।

ओह हो अब समझ में आया,

तेरे पेशानी में सलवटें है,क्यो आया,

अरे मेरे दिलबर तू है बेहद घबराया,

शायद जमाने ने फुरसत से तुझे सताया 

कोहरे।।

अरे दीवाने तूने कहा था,

तू सब ठीक कर देती है,

चाहे जैसा भी वक्त हो या 

काले दिन का साया,हो

कोहरे।।

हम तुम साथ है,चाहे दूर हो

सैकङो मिलो की फिर भी 

साथ है बनकर तेरा हम साया,

कोहरे।।

आँगन के कोने में देखो धूप का

धना,साया,

या कैक्टस के पौधे पर खिलता

साल भर में  एक फूल,

या तेरे मन के आंगन मे 

चहकता छोटी सी खुशी,का पैमाना 

कोहरे।।

सुन मेरा इंतजार करना 

मैं  लौट कर आऊंगी, 

फिर महकेगा सूना,

मन का खाली कोना,

एतबार करना 

अपना भी वक्त सुधर जायेगा

दिल हो जायेगा फिर से

खूबसूरत सा छौना छौना

कोहरे।।

खूब खुश रहे ,कल मिलते है

फिर कुछ लम्हे तय करते है,


नंदिता एकांकी 

प्रयाग राज

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