सुनील उपध्याय
बस्ती । समाज के सुख, दुख और निजी अनुभव जब कागजों पर दौड़ते हैं तो कविता का जन्म होता है। साहित्यकार जन साधारण के जीवन संघर्षो में उम्मीदों का रंग भरते हैं। यह विचार भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार और वर्षों तक जुगानी काका के नाम से रेड़ियों पर जीवन्त प्रस्तुति देने वाले डा. रविन्द्र श्रीवास्तव जुगानी भाई ने मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किया। वे बस्ती की माटी में रचे बसे 5 दशक से निरन्तर साहित्य साधना कर रहे अनेक पुस्तकों के रचयिता डॉ. रामकृष्णलाल जगमग के सम्मान में प्रेस क्लब में गुरूवार को आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन, मुशायरे को सम्बोधित कर रहे थे।
जिन्हें रेडियो पर सुनकर एक पीढी जवान हुई ऐसे जुगानी भाई ने कहा कि डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग का साहित्य आकाश जन सरोकारों के खुरदुरी जमीन से जुड़ी हुई है। ऐसा सौभाग्य कम रचनाकारों को मिलता है जिनकी रचनायें जन मानस की जुबान पर हो। चांशनी से शुरू जगमग का सफर निरन्तर आगे बढ़े यह आवश्यक है। कहा कि ‘ एक प्रिन्सपल कह पडे, भाई राम अधार, रेट हमारा जान लो, केवल तीन हजार, नकल की पूरी सुविधा’ जैसे दुमदार दोहों ने जगमग को साहित्य के क्षेत्र में प्रतिष्ठा दी। वे समय के सत्य को रचते बसते ‘ सच के दस्तावेज’ काव्य संकलन तक पहुंचे हैं, पूर्वान्चल के लिये यह बड़ी उपलब्धि है। इसी क्रम में प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान की ओर से ‘ डा. रविन्द्र श्रीवास्तव जुगानी भाई, डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ और डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक को अंग वस्त्र, सम्मान-पत्र देकर सम्मानित किया गया।
समीक्षक डॉ. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र ने कहा कि डॉ. रामकृष्णलाल जगमग ने केवल अपनी पहचान नहीं बनाई, उन्होने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, रंगपाल, द्विजेश, लक्ष्मी नरायन लाल की धरती पर साहित्यकारों की एक पौध को सींचा। ऐसा कम रचनाकारों में दिखाई पड़ता हैै।
अपने सम्मान से अभिभूत डॉ. जगमग ने कहा कि 1970 से शुरू हुई काव्य संसार की यह यात्रा अनेक मजबूरियों, थपेड़ो, संत्रासों से मजबूत हुई है। वे सौभाग्यशाली है कि महादेवी वर्मा जी ने किशोर अवस्था में उन्हें ‘जगमग’ उप नाम दिया, यह मेरी बड़ी धरोहर है। कहा कि स्वामी विवेकानन्द पर महाकाव्य का सृजन जारी है जो शीघ्र ही पाठकों के सम्मुख होगा। उनकी रचना‘ आपने छोड़ा हमें मझधार में, क्या कोताही थी हमारे प्यार में, यह सफलता का प्रथम सोपान है, नम्रता ले आईये व्यवहार में’ को लोगांे ने खूब सराहा।
कार्यक्रम में दिनेश चन्द्र पाण्डेय, डॉ. दशरथ प्रसाद यादव, बटुकनाथ शुक्ल, परशुराम शुक्ल, नीलम सिंह, शोभावती देवी शर्मा, जगदीश प्रसाद पाण्डेय, सुदामा राय, पंकज भैय्या, बैजनाथ मिश्र, डा. राजेन्द्र सिंह, बेनी माधव मिश्र, वसीम अंसारी आदि ने डा. जगमग के काव्य संसार पर चर्चा करते हुये कहा कि अपने शहर में आदर पाने का सौभाग्य सबको नहीं मिलता। डा. जगमग इसके वास्तविक हकदार है।
इसी क्रम में विनोद उपाध्याय के संचालन और वरिष्ठ कवि भद्रसेन सिंह बंधु की अध्यक्षता में आयोजित कवि सम्मेलन में डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी ‘दीपक’ सत्येन्द्रनाथ मतवाला, लालमणि प्रसाद, ताजीर वस्तवी, रामचन्द्र राजा, पंकज कुमार सोनी, डा. पारस वैद्य, सागर गोरखपुरी, हरीश दरवेश, फूलचन्द्र चौधरी, नवनीत पाण्डेय, चन्द्रमोहन लाल, अजय श्रीवास्तव ‘अश्क’ आदि ने काव्य पाठ कर वातावरण को सरस किया। कार्यक्रम में सन्तोष कुमार भट्ट, दीपक प्रसाद, साईमन फारूकी, वशिष्ठ पाण्डेय, राकेश तिवारी, राजेन्द्र उपाध्याय सर्वेश श्रीवास्तव, अनिल श्रीवास्तव के साथ ही अनेक साहित्यकार और सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग उपस्थित रहे।
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