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नारद जयंती पर याद किये गए देवर्षि नारद


शिवेश शुक्ला 
बस्ती:आद्य पत्रकार 'देव​र्षि नारद जयंती' के अवसर पर उनके चित्र पर फुलमाला आहना कर उन्हें याद किया ,कार्यक्रम में पत्रकार विनोद उपाध्याय, प्रेरक मिश्र,अशोक कुमार श्रीवास्तव,महेंद्र तिवारी,राकेश श्रीवास्तव,सन्दीप गोयल,यस पी श्रीवास्तव,अनिल श्रीवास्तव,समाज सेवी रंजीत श्रीवास्तव,अजय श्रीवास्तव,अपूर्व शुक्ला आदि लोग उपस्थित रहे।

 आद्य पत्रकार 'देव​र्षि नारद जयंती'(ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया-09मई,2020) को 'विश्व पत्रकारिता दिवस' के रूप में मनाएं। भारत में प्रथम साप्ताहिक समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' 30 मई, 1826 को प्रकाशित हुआ, उस दिन 'देवर्षि नारद जयंती' थी। दुर्भाग्य है कि अं​ग्रेजियत मानसिकता के पत्रकारों ने बड़े ही षडयंत्र पूर्वक 'ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया'(देव​र्षि नारद जयंती) की जगह आंग्ल तिथि 30 मई को 'पत्रकारिता दिवस' के रूप में मनाने की नई परम्परा शुरू की। आज पुन: समय की मांग है कि हम अपने मूल की ओर लौटें और इस कोरोना महामारी में 'नारदीय परम्परा' को आधार मानकर 'देवर्षि नारद जयंती' को 'विश्व पत्रकारिता दिवस' के रूप में मनाएं और विश्व के लिए 'लोकमंगल' की कामना करें।।  

नारदीय परम्परा...

नारदीय परम्परा,पत्रकारिता के उन्हीं आदर्शों में है जिन्हें नारद ने युगों पहले जन कल्याण के लिये स्थापित किया था। नारद सब लोकों की ख़बर रखते थे और उन्हें जन जन तक पहुँचाते भी थे। लेकिन उनका ख़बर प्राप्त करने और उसे सम्प्रेषित करने का उद्देश्य बहुत स्पष्ट था। लोकमंगल की भावना। आजकल कुछ पत्रकार समाचार संकलन व सम्प्रेषण इस प्रकार करते हैं जिस से विभिन्न समुदाय आमने सामने आ जाते हैं। इस प्रकार की पत्रकारिता सही अर्थों में पत्रकारिता नहीं कहीं जा सकती। व्यवसाय चाहे कोई भी हो उसका अंतिम उद्देश्य 'सर्वजनहिताय सर्वजन सुखाय' ही होना चाहिए। महर्षि नारद का आचरण और लोक संचार के क्रियाकलाप इस कसौटी पर शत् प्रतिशत सही उतरते हैं। नारद अपनी सूचना के आदान-प्रदान के समय यह ध्यान रखते थे कि इससे बुराई का शमन होना चाहिए। विभिन्न राजाओं एवं जनसमूहों में व्याप्त कटुता का अंत हो। सही अर्थों में कहें तो महर्षि नारद ने पत्रकारिता या संवाद रचना के क्षेत्र में एक आर्दश स्थापित किया। आज भी पत्रकार उन आर्दशों को अपने सामने रख सकते हैं। उन आदर्शों तक पहुँच पाते हैं या नहीं, यह अलग बात है। लेकिन आदर्श का विस्मरण तो नहीं होना चाहिए। यदि आँखों के आगे से आदर्श हट गया तो विचलन का ख़तरा बहुत बढ़ जाता है।

मित्रों, 'असत्य, अशिव व असुन्दर' पर 'सत्यम्, शिवम् व सुन्दरम्' की शंख ध्वनि ही 'पत्रकारिता' है। पत्रकार व पत्रकारिता का धर्म 'असत्य में सत्य, अशिव में शिव और असुन्दर में से सुन्दर पक्ष' को लोकहित में परोसना ही धर्म है।

 अगर पत्रकारिता धर्म को जानना है तो 'देवर्षि नारद' को जानना होगा। नारद ने वाणी का प्रयोग इस प्रकार किया जिससे घटनाओं का सृजन हुआ। नारद द्वारा प्रेरित हर घटना का परिणाम लोकहित से निकला। इसलिए वर्तमान संदर्भ में यदि नारद को आज तक के विश्व का सर्वश्रेष्ठ लोक संचारक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नारद के हर वाक्य, हर वार्ता और हर घटनाक्रम का अगर विश्लेषण करें तो बार-बार सिद्ध होता है कि वे एक अति निपुण व प्रभावी संचारक थे। उनका संवाद शत-प्रतिशत 'लोकहित' में रहता था। वे अपना हित तो कभी देखे ही नहीं। उनके संवाद में हमेशा लोक कल्याण की भावना रहती थी। वास्तव में पत्रकारिता ‘लोकहितं मम् करणीयम’ के भाव से ही होनी चाहिए।

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