इमरान अहमद मोहर्रम पर करबला में हुए शहीदों की याद में ग़म का इज़हार करना कोरोना माहमारी की भेंट चढ़ गया। पहली बार मजलिसों व ताजियों के जुलूस ...
इमरान अहमद
मोहर्रम पर करबला में हुए शहीदों की याद में ग़म का इज़हार करना कोरोना माहमारी की भेंट चढ़ गया। पहली बार मजलिसों व ताजियों के जुलूस पर कोविड 19 ने पाबंदी लगा दी।
करबला में नवासे रसूल हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मनाया जाने वाला मुहर्रम के त्योहार पर कोरोना ने पाबंदी लगा दी। कोरोना के कारण ना ही मजलिसों का आयोजन हो पाया ना ही ताज़िया का जुलूस निकाला जा सका। जिससे ताज़ियादारों में मायूसी छायी रही।
आपको बता दें की हर साल मुहर्रम के दिन मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मोहर्रम का त्योहार परंपरागत रुप से बेहद गमजदा माहौल में मनाया जाता है। इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग या हुसैन,हक हुसैन,शहीदे करबला हुसैन,जैसे गमगीन सदाओं के बीच ताजियों का जुलूस निकालते है।मनकापुर इलाके में परंपरागत रुप से ताजियों को ईदगाह के पास बने कर्बला में दफनाने की परंपरा रही है।
आपको बता दें की हर साल मुहर्रम के दिन मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मोहर्रम का त्योहार परंपरागत रुप से बेहद गमजदा माहौल में मनाया जाता है। इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग या हुसैन,हक हुसैन,शहीदे करबला हुसैन,जैसे गमगीन सदाओं के बीच ताजियों का जुलूस निकालते है।मनकापुर इलाके में परंपरागत रुप से ताजियों को ईदगाह के पास बने कर्बला में दफनाने की परंपरा रही है।
आज मोहर्रम की 10 वीं तारीख़ हैं जिसे अरबी ज़बान में यौमे आशुरा कहा जाता है।मोहर्रम का चांद देखने के बाद इस्लाम के मानने वाले इस 10 दिन को मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 अहलो अयाल( रिश्ते दारो) की शहादत को याद करते हैं।इसी कड़ी में यौमे आशुरा के दिन लोग ग़मगीन माहौल में नौहा पढ़ते हुए सीना जनी करते हुए जुलूस भी निकालते हैं। मगर इस बार कोरोना की वजह से लोगों ने सरकार की गाइड लाइन का पालन करते हुए ताज़ियादारी व मजलिसों का आयोजन नहीं किया। वहीं कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए पुलिस बल पूरी तरह मुस्तैद रही।
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