Type Here to Get Search Results !

Bottom Ad

शारदीय नवरात्र में करें मातृशक्ति का पूजन, घर में आएगी लक्ष्मी सहित सुख समृद्धि एवं खुशहाली: पं. आत्मा राम


शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा।
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा।
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥

रविवार या सोमवार को देवी भैंसे की सवारी से जाती हैं तो देश में रोग और शोक बढ़ता है। शनिवार या मंगलवार को देवी मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं, जिससे दुख और कष्ट की वृद्धि होती है।
बुधवार या शुक्रवार को देवी हाथी पर जाती हैं। इससे बारिश ज्यादा होती है।
गुरुवार को मां दुर्गा मनुष्य की सवारी से जाती हैं। इससे जो सुख और शांति की वृद्धि होती है।

शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकी‌र्त्तिता ।।

सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं।
शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर देवी का वाहन घोड़ा माना जाता है।
गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं।
बुधवार से नवरात्र शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं।

गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे।
नोकायां सर्वसिद्धि स्या ढोलायां मरणंधुवम्।।

देवी जब हाथी पर सवार होकर आती है तो पानी ज्यादा बरसता है। घोड़े पर आती हैं तो पड़ोसी देशों से युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका पर आती हैं तो सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और डोली पर आती हैं तो महामारी का भय बना रहता हैं।

शारदीय नवरात्र का प्रारंभ 17 अक्‍टूबर दिन शन‍िवार से  हो रहा है। 

घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना जाता है। घोड़े पर माता का आगमन शासन और सत्ता के लिए अशुभ माना गया है। इससे सरकार को विरोध का सामना करना पड़ता है और सत्ता परिवर्तन का योग बनता है। इसके साथ ही विजयादशमी 25 अक्टूबर रविवार के दिन है। बता दें क‍ि रविवार के दिन विजयादशमी होने पर माता हाथी पर सवार होकर वापस कैलाश की ओर प्रस्थान करती हैं। माता की विदाई हाथी पर होने से आने वाले वर्ष में खूब वर्षा होगी। इससे अन्न का उत्‍पादन अच्‍छा होता है।

शुभ मुहूर्त

 सुबह 06 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 13 मिनट तक है। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 29 मिनट तक है।


मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना : 17 अक्टूबर 

प्रतिपदा व्रत

मां ब्रह्मचारिणी पूजा : 18 अक्टूबर

द्वितीया

मां चंद्रघंटा पूजा : 19 अक्टूबर

तृतीया

मां कुष्मांडा पूजा : 20 अक्टूबर

चतुर्थी

मां स्कंदमाता पूजा : 21 अक्टूबर

पंचमी

मां कात्यायनी पूजा : 22 अक्टूबर

षष्ठी 

मां कालरात्रि पूजा : 23 अक्टूबर

सप्तमी

मां महागौरी दुर्गा पूजा : 24 अक्टूबर

अष्टमी व्रत

नवमी व्रत

मां सिद्धिदात्री पूजा : 25 अक्टूबर

नवरात्र पारणा मूर्ति विसर्जन शमी पूजन नीलकंठ दर्शन।

ज्योतिष के अनुसार नवरात्रि के ये 9 रंग हैं खास, इन्‍हें धारण करके करें पूजा

देवी शैलपुत्री: देवी मां के इस स्‍वरूप को पीला रंग अत्‍यंत प्र‍िय है। इसल‍िए इस द‍िन पीला रंग पहनना शुभ माना जाता है।

देवी ब्रह्मचारिणी: देवी ब्रह्मचारिणी को हरा रंग अत्‍यंत प्र‍िय है। इसल‍िए नवरात्रि के दूसरे दिन हरे रंग का वस्‍त्र धारण करें।

देवी चंद्रघंटा: देवी चंद्रघंटा को प्रसन्‍न करने के ल‍िए नवरात्रि के तीसरे दिन हल्का भूरा रंग पहनें।

देवी कूष्माण्डा: देवी कूष्‍मांडा को संतरी रंग प्र‍िय है। इसल‍िए नवरात्रि के चौथे दिन संतरी रंग के कपड़े पहनें।

देवी स्कंदमाता: देवी स्‍कंदमाता को सफेद रंग अत्‍यंत प्र‍िय है। इसल‍िए नवरात्रि के पांचवे द‍िन सफेद रंग के वस्‍त्र पहनें।

देवी कात्यायनी: देवी मां के इस स्‍वरूप को लाल रंग अत्‍यंत प्रिय है। इसल‍िए इस द‍िन मां की पूजा करते समय लाल रंग का वस्‍त्र पहनें।

देवी कालरात्रि: भगवती मां के इस स्‍वरूप को नीला रंग अत्‍यंत प्र‍िय है। इसल‍िए नवरात्रि के सातवें द‍िन नीले रंग के वस्‍त्र पहनकर मां की पूजा-अर्चना की जानी चाह‍िए।

देवी महागौरी: देवी महागौरी की पूजा करते समय गुलाबी रंग पहनना शुभ माना जाता है। अष्टमी की पूजा और कन्या भोज करवाते इसी रंग को पहनें।

देवी सिद्धिदात्री: देवी मां के इस स्‍वरूप को बैंगनी रंग अत्‍यंत प्रिय है। इसल‍िए नवमी त‍िथ‍ि के द‍िन भगवती की पूजा करते समय बैंगनी रंग के वस्‍त्र पहनने चाह‍िए।

दिन के अनुसार मा को लगाएं ये भोग, पूरी होगी मनोकामना।।

  • नवरात्रि के पहले दिन मां के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करें। ऐसा करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है।
  • नवरात्रि के दूसरे दिन मां को शक्‍कर का भोग लगाकर घर के सभी सदस्यों में बांटें। इससे आयु वृद्धि होती है
  • नवरात्रि के तीसरे दिन देवी भगवती को दूध या खीर का भोग लगाएं। इसके बाद इसे ब्राह्मणों को दान कर दें। ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
  • नवरात्रि के चौथे दिन देवी मां को मालपुए का भोग लगाएं। इसके बाद इसे जरूरतमंदों को दान कर दें। ऐसा करने से व्‍यक्ति की बौद्धिक क्षमता का व‍िकास होता है।
  • नवरात्रि के पांचवें दिन मां को केले का भोग अर्पित करें। ऐसा करने से जातक न‍िरोगी रहता है।

  • नवरात्रि के छठवें द‍िन मां भगवती को शहद का भोग लगाएं। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से आकर्षण भाव में वृद्धि होती है।
  • नवरात्रि के सातवें द‍िन देवी मां गुड़ का भोग लगाएं। इसके बाद यह भोग न‍िराश्रितजनों और दिव्‍यांगों को बांट दें। ऐसा करने से देवी मां प्रसन्‍न होती हैं और ऐश्‍वर्य-वैभव की प्राप्ति होती है।

  • नवरात्रि के आठवें दिन माता भगवती को नारियल का भोग लगाकर वह नारियल दान कर दें। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से संतान संबंधी सभी परेशानियों से राहत म‍िलती है।
  • नवरात्रि के नवें द‍िन देवी भगवती को त‍िल का भोग लगाएं। इसके बाद यह भोग क‍िसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान कर दें। इससे अकाल मृत्‍यु से राहत म‍िलती है।

पं. आत्मा राम पांडेय जी ने बताया कि   देवी भागवत के तीसरे स्कन्द में नवरात्रि के महत्त्व का वर्णन  किया है | मनोवांछित सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए देवी की महिमा सुनायी है, नवरात्रि के 9 दिन उपवास करने के शारीरिक लाभ बताये हैं |

1.शरीर में आरोग्य के कण बढ़ते हैं |

2.जो उपवास नहीं करता तो रोगों का शिकार हो जाता है, जो नवरात्रि के उपवास करता है, तो भगवान की आराधना होती है, पुण्य तो बढ़ता ही है, लेकिन शरीर का स्वास्थ्य भी वर्ष भर अच्छा रहता है |

3.प्रसन्नता बढ़ती है |

4.द्रव्य की वृद्धि होती है |

5.लंघन और विश्रांति से रोगी के शरीर से रोग के कण ख़त्म होते हैं

नौ दिन नहीं तो कम से कम 7 दिन / 6दिन /5 दिन , या आख़िरी के 3 दिन तो जरुर उपवास रख लेना चाहिए |

  • देवी भागवत में आता है कि देवी की स्थापना करनी चाहिए | नौ हाथ लम्बा भण्डार( मंडप/स्थापना का स्थान) हो |
  • भगवती रुप में कन्या  पूजन करने से भी मनो कामना की पूर्ति होती है और प्रेरणा देनेवाली ऐसी कन्या को भगवती समझ कर पूजन करने से दुःख मिटता है, दरिद्रता मिटती है |

नवरात्रि के पहले दिन स्थापना, देव वृत्ति की कुंवारी कन्या का पूजन हो |

नवरात्रि के दूसरे दिन 3 वर्ष की कन्या का पूजन हो, जिससे धन आएगा ,कामना की पूर्ति के लिए |

नवरात्रि के तीसरे दिन 4 वर्ष की कन्या का पूजन करें, भोजन करायें तो कल्याण होगा,विद्यामिलेगी, विजय प्राप्त होगा, राज्य मिलता है |

नवरात्रि के चौथे दिन 5 वर्ष की कन्या का पूजन करें और भोजन करायें | रोग नाश होते हैं ।

नवरात्रि के पांचवे दिन 6 वर्ष की कन्या काकाली का रुप मानकर पूजन करके भोजन कराए तो शत्रुओं का दमन होता है |

नवरात्रि के छटे दिन 7 वर्ष की कन्या काचंडी का रुप मानकर पूजन करके भोजन कराए तो ऐश्वर्य और धन सम्पत्ति की प्राप्ति होती है |

नवरात्रि के सातवे दिन 8 वर्ष की कन्या का शाम्भवीरुप में पूजन कर के भोजन कराए तो किसी महत्त्व पूर्ण कार्य करने के लिए,शत्रु पे धावा बोलने के लिए |


नवरात्रि की अष्टमी को दुर्गा पूजा करनी चाहिए | सभी संकल्प सिद्धहोते हैं | शत्रुओं का संहार होता है |


नवरात्रि के नवमी को 9 से 17 साल की कन्या का पूजन भोजन कराने से सर्व मंगल होगा, संकल्प सिद्ध होंगे, सामर्थ्यवान बनेंगे, इसलोक के साथ परलोक को भी प्राप्त कर लेंगे, पाप दूर होते हैं, बुद्धि में औदार्य आता है, नारकीय जीवन छुट जाता है, हर काम में, हर दिशा में सफलता मिलती है | नवरात्रि में पति पत्नी का व्यवहार नहीं, संयमसे रहें |

शारदीय नवरात्रि 17 अक्तूबर से शुरू हो रही है। शक्ति का यह महापर्व 25 अक्तूबर तक चलेगा। नवरात्रि में 9 दिनों तक माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। इसके लिए लोग अपने घरों पर नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हैं और इसके लिए कई तैयारियां की जाती है। दुर्गा पूजा और कलश स्थापना में कई तरह की चीजों की जरूरत होती है। आइए जानते हैं नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा में किन-किन सामग्रियों की आवश्यकता होती है।

शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा के स्वागत की तैयारी

नवरात्रि में घर पर मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को स्थापित करने के लिए लकड़ी की चौकी का होना जरूरी है।

माता को लाल रंग का कपड़ा बहुत पसंद होता है ऐसे में चौकी पर बिछाने के लिए लाल कपड़ा जरूर होना चाहिए।

भूलकर माता की चौकी पर सफेद या काले रंग का कपड़ा नहीं बिछाना चाहिए।

नवरात्रि पर कलश स्थापना के साथ माता की पूजा-आराधना का सिलसिला शुरू हो जाता है जो 9 दिनों तक चलता है।

कलश स्थापना में सोने, चांदी या मिट्टी के कलश का प्रयोग किया जा सकता  है।

कलश स्थापना और मां दुर्गा की पूजा में आम के पत्तों का होना बहुत जरूरी होता है। आम के पत्तों से तोरड़ द्वार बनना चाहिए।

नवरात्रि में कलश स्थापना और पूजा में जटा वाला नारियल के साथ पान, सुपारी, रोली, सिंदूर, फूल और फूल माला,कलावा और अक्षत यानि सबूत चावल होना चाहिए।

हवन के लिए आम की सूखी लकड़ी, कपूर, सुपारी, घी और मेवा जैसी सामग्री का होना आवश्यक है।


लेखक

            ज्योतिषाचार्य 

पं. आत्मा राम पांडेय"काशी "

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad



 

Below Post Ad

5/vgrid/खबरे