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ईसानगर के सरयू के किनारे कार्तिक पूर्णिमा पर 415 वर्षों से लगने वाले ठुठवा मेले पर लग गया पूर्ण विराम


हरीश अवस्थी

लखीमपुर-खीरी।जिले के ईसानगर क्षेत्र में सरयू नदी किनारे कार्तिक पूर्णिमा पर 415 वर्षों से लग रहे ठूठवा मेले पर विगत वर्ष जहां कोरोना को लेकर प्रशासन ने प्रतिबंध लगा दिया था


वहीं  इस वर्ष भी सोमवार को थानाध्यक्ष ईसानगर की रिपोर्ट पर तहसील प्रशासन ने मेला न लगने का फरमान जारी कर पूर्ण विराम लगा दिया। 


हालांकि मेले को लेकर पहले से ही प्रशासन गंभीर नहीं था। जिसको देखकर ईसानगर स्टेट के राज परिवार से युवा बीजेपी नेता कुँवर रूद्रप्रताप सिंह उर्फ बन्नू भैया ने जिला अधिकारी व उपजिलाधिकारी को ज्ञापन देकर तराई के ऐतिहासिक मेले को लगवाने की मांग की थी। जिसमें लोगों की आस्था व रोजीरोटी को लेकर भी चर्चा की गई थी। 


 इस ऐतिहासिक मेले में कई जनपदों के साथ साथ स्थानीय दुकानें लगने से जहां मेले की रौनक देखे बिना लोग नहीं रह पाते वहीं क्षेत्र के छोटे बड़े नेताओं की राजनैतिक पकड़ आमजन पर कितनी है इसी मेले से शुरू होती थी।


वहीं प्रशासनिक अधिकारी भी मेले को लेकर कई दिन पहले से तैयारियां कर श्रद्धालुओं का स्वागत करने के लिए तैयारी कर एक सप्ताह तक मेले में बने रहते थे।



मेले में लाखों की संख्या में पहुँचने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था के लिए कई उपनिरीक्षकों के साथ साथ महिला पुलिस व पीएसी बटालियन सहित फ़ायर ब्रिगेड की भी जरूरत पड़ती है। मेले में कल्पवासियों व साधु संतों की सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाता था । प्रशासन की ओर से इसके लिए स्वास्थ्य विभाग व सफाई कर्मचारियों की तैनाती पहले से ही सुनिश्चित करना पड़ता था। इस दौरान किसी भी स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन को कड़ी मशक्क़त करनी पड़ती थी। 


कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुँचने पर सरयू नदी के किनारे स्नान दान भंडारे आदि के दौरान भी पर्याप्त व्यवस्था की जाती थी। पर इस बार मेला जाने वाले रास्तों पर जलभराव,कीचड़ व दलदल होने के साथ साथ कोविड 19 की गाइड लाइन का हवाला देकर सोमवार को मेला न लगने का आदेश जारी होते ही नए नेताओं के साथ साथ आमजन में मायूसी छा गई।



ईसानगर क्षेत्र में सरयू नदी किनारे लगने वाले ऐतिहासिक ठूठवा मेले को लेकर 12 नवम्बर को ईसानगर के राजपरिवार के कुँवर रुद्रप्रताप सिंह उर्फ बन्नू भैया ने जिलाधिकारी समेत उपजिलाधिकारी को ज्ञापन दिया था। जिसको देख इस बार ऐतिहासिक मेला लगने को लेकर धौरहरा क्षेत्रवासियों में एक आस जगा दी थी पर यह आस सोमवार को उस समय टूट गई जब दो दिन पहले थाना प्रभारी निरीक्षक ईसानगर राजकरन शर्मा की आख्या पर उपजिलाधिकारी धौरहरा ने सोमवार को मेला न लगने का आदेश जारी कर दिया। जिसमें मुख्य रूप से रास्तों पर जलभराव,कीचड़,दलदल के साथ साथ कोविड 19 गाइड लाइन का हवाला दिया गया है। 



एक तरफ हो रही थी बैठक,दूसरी ओर आ गया आदेश

ईसानगर क्षेत्र में लगने वाले ऐतिहासिक ठूठवा मेले को लेकर शुक्रवार को ज्ञापन देकर मेला लगने की संभावनाओं को देखते हुए सोमवार को युवा बीजेपी नेता रुद्रप्रताप सिंह ईसानगर में अपने आवास पर क्षेत्र के व्यापारियों की बैठक बुलाकर मेले में दुकानें लगाने को लेकर विचार विमर्श कर रहे थे वहीं कुछ व्यापारी सुबह ही मेला ग्राउंड पर पहुचकर दुकान लगाने के लिए अपनी मनपसंद जगह तलाश करने लगे थे। इसी दौरान उपजिलाधिकारी के द्वारा जारी आदेश की जानकारी पाते ही व्यापारियों में मायूसी छा गई। वहीं व्यापारी मेला ग्राउण्ड से अपने टेंट व कुर्सियां भी मायूस होकर वापस ले आये।


दो नेता पहुचे मेला ग्राउंड,घंटों हुई मंत्रणा,लोगों ने अलग अलग दी राय

सोमवार को उपजिलाधिकारी धौरहरा का आदेश आते ही मेला ग्राउंड में मौजूद व्यापारियों व ग्रामीणों से मिलने के लिए रुद्रप्रताप सिंह के साथ साथ विनोद शंकर अवस्थी भी पहुचकर लोगों को संबिधित किया। इस दौरान रुद्र प्रताप सिंह ने अपने संबोधन में लोगों को बताया कि प्रशासन ने जो आदेश दिया है वह उससे सहमत है।



 प्रशासन ने आमजन की सुरक्षा को लेकर सोंच समझ कर ही आदेश दिया है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान में किसी के लिए कोई रोक नहीं है वह होती रहेगी। वहीं विनोद शंकर अवस्थी धौरहरा ने मेले को लेकर प्रदेश स्तर पर बीजेपी के उच्च पदाधिकारियों से बात करते हुए लोगों की भावनाओं को ठेस पहुचाने की बात कहते हुए तहसील प्रशासन द्वारा जारी आदेश को मानने पर अपनी सहमति प्रकट कर लोगों से दुकाने न लगाने की अपील की। वहीं इस दौरान व्यापारी कृष्ण कुमार,प्रमोद कुमार समेत 30 व्यापारी जो मेला ग्राउंड में मौजूद थे मेला न लगने के आदेश की जानकारी पाकर नाराज़गी भी व्यक्त करते हुए बताया कि यह मेला वर्षों से उनकी रोजी रोटी का जरिया है जो बन्द हो गया।



 वहीं किसान देशराज सिंह एवं रजी अहमद सिद्दीकी ने तहसील प्रशासन ने जिन बातों का हवाला देकर मेले पर रोक लगा दी उस पर ही सवालिया निशान लगाते हुए बताया कि दलदल पानी कीचड़ तो हमेशा होता था फिर भी मेला लगता था। मेला न लगने की वजह से साधु संतों के कल्पवास के साथ साथ अब एक सप्ताह तक चलने वाले भंडारे भी नहीं हो सकेगें जो बेहद दुखद है।

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