गोण्डा: धन कमाई का रिसर्च सेंटर बना हुआ है एल्गिन चरसडी बांध, 374 करोड़ रुपए खर्च के बाद भी बांध के मजबूती की कोई गारंटी नही | CRIME JUNCTION गोण्डा: धन कमाई का रिसर्च सेंटर बना हुआ है एल्गिन चरसडी बांध, 374 करोड़ रुपए खर्च के बाद भी बांध के मजबूती की कोई गारंटी नही
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गोण्डा: धन कमाई का रिसर्च सेंटर बना हुआ है एल्गिन चरसडी बांध, 374 करोड़ रुपए खर्च के बाद भी बांध के मजबूती की कोई गारंटी नही



रजनीश/ज्ञान प्रकाश       

करनैलगंज(गोंडा)। एल्गिन चरसडी बंधे का धंधा खूब फल फूल रहा है। एल्गिन चरसडी बांध का निर्माण साढे सात करोड़ रुपये से होने के बाद करीब 374 करोड़ रुपए उसके मरम्मत और बांध के बचाव पर खर्च हुए फिर भी बांध न टूटे इसकी कोई गारंटी नहीं है। 


एक बार फिर बाढ़ क्षेत्र को बाढ़ से बचाने के लिए बांध पर मरम्मत और मजबूती देने का काम शुरू है। एल्गिन चरसडी बांध धन कमाई का रिसर्च सेंटर बना हुआ है। 


कभी बांध बनाने, तो कभी बांध को मजबूत करने, तो कभी रिंग बांध का निर्माण, तो कभी कटान रोकने के लिए स्पर, ठोकर से बचाव के उपाय एवं कट बनाने की कवायदें हर साल की जाती है। 


जहां बांध कटने की संभावना है वहां बोल्डर पिचिंग का काम दिखाया जा रहा है। जिस पर करोड़ों रुपए घाघरा में बाढ़ के पानी की तरीके से बहा दिया जाता है। 


बांध के नाम पर अवैध कमाई का खेल लगातार 14 सालों से चल रहा है। करीब 52 किलोमीटर लंबे इस एल्गिन चरसडी बांध के निर्माण में लगभग साढे सात करोड़ रुपए का खर्च वर्ष 2006-07 में आया था। 


जिसकी मरम्मत और क्षेत्र को बाढ़ से बचाने के लिए नए नए प्रयोग व शोध करने पर अब तक लगभग 374 करोड़ रुपए का खर्च इस बांध पर आ चुका है। 


बीते 3 वर्ष पूर्व बांध को कुछ किलोमीटर तक पक्का बनाने के लिए 97 लाख रुपये जारी किए गए। जिसमें करीब पौने 5 किलोमीटर का नया बांध बनने के साथ पत्थर की पिचिंग का कार्य होना था। 


जो अभी भी अधूरा पड़ा है। इस बांध के निर्माण में एक बार फिर खेल हो गया। जहां निर्धारित किलोमीटर के अनुरूप कम बांध की मरम्मत एवं पत्थर से पिचिंग का काम किया गया। 


पहले कटान को रोकने के लिए जियो ट्यूब सहित ब्रेक रोरा, बालू की बोरियां, बल्ली, पाइलिंग के साथ पेड़-पौधे व घास फूस तक किनारों पर डाला जाता था। 


मगर इस बार बांध के किनारों को पत्थरों से पीचिंग कराने के बावजूद भी वहां स्पर, ठोकर तथा बांध को बचाने के लिए परक्यूपाइन बनाने का काम चल रहा है। 


कोई जिम्मेदार अधिकारी मानने को तैयार नहीं है की बांध सही सलामत है और बाढ़ से कोई खतरा नहीं है। घाघरा का पानी भी जून के अंतिम माह से धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो जाता है। 


इसी माह बाढ़ का पानी बांध तक आ जाने की पूरी संभावना है। माझा वासियों के लिए नासूर बन चुके इस बांध पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए बाढ़ के पानी में बह जाता है और बाढ़ आने की सुगबुगाहट होते ही बांध की मरम्मत के लिए अधिकारियों की दौड़ शुरू हो जाती है। 


पिछले वर्ष अक्टूबर माह में दोबारा बाढ़ आने से एल्गिन चरसडी बांध के चंदापुर किटौली के पास बांध में कटान शुरू हो गई। 


आनन फानन में आसपास के गांवों को खाली कराने व बांध की मरम्मत का काम तेज कर दिया गया। इस मरम्मत में गत वर्ष करीब 24 करोड़ खर्च व नए सिरे से बांध को बोल्डर से पिचिंग का काम चल रहा है। 


जिसमें लगभग 50 लाख का स्टीमेट विभाग ने बनाया है। कार्य चल रहा है। दूसरी तरफ नदी की गहराई बढाने व धारा को मोड़ने के लिए ड्रेजिंग मशीन से काम चलाया जा रहा है। जिसमें करोड़ों रुपये खर्च हो रहा है। 



एसडीएम हीरालाल यादव का कहना है कि बांध के मरम्मत कार्य पर लगातार नजर रखी जा रही है। 


बांध की मरम्मत कार्य में किसी भी प्रकार की लापरवाही न हो इसके लिए लगातार टीम द्वारा निरीक्षण कराया जा रहा है। 


इसके साथ ही बरसात के पूर्व ही बांध के मरम्मत व रेन कट्स, रेट होल भरने के निर्देश दिए गए हैं।



सिंचाई विभाग के एई अमरेश सिंह कहते हैं विभाग की ओर से होने वाले सभी कार्य तेजी से चल रहे हैं। 


बरसात व बाढ़ शुरू होने के पहले विभाग अपने कार्य को पूरा कर लेगा। लगभग कार्य पूरा हो चुका है और बांध पूरी तरह से सुरक्षित है। 


चंदापुर किटौली के पास बांध को मजबूत बनाया जा रहा है जिसमें करीब 50 करोड़ का खर्च अनुमानित हैं। बोल्डर पिचिंग का काम तेजी से हो रहा है।

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