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बीएसए साहब....अपना ही आदेश बदलने के लिए हुए मजबूर....आखिर क्यों?




कृष्ण मोहन
गोण्डा:मौत रूपी कोरोना से निजात पाने के लिए जब शासन समस्त क्षेत्रों लॉक डाउन कर दिया गया तो ऐसे मे समस्त विद्यालयों को भी इस बीच बंद करना पड़ा जिसके चलते छात्रों की पढ़ाई बंद हो गयी,इतना ही लॉक डाउन के चलते सभी लोगों का काम काज भी बंद हो गया ऐसे में लोगों की आर्थिक स्थित बद से बदत्तर हो गयी जिसे देखते हुए जिले के बीएसए द्वारा एक आदेश पारित हुआ कि लॉक डाउन के समय पढ़ाई न होने के कारण अभिभावकों के खराब आर्थिक स्थित को देखते हुए उनसे इस दौरान का फीस नही लिया जाएगा, जिसे सुनकर अभिभावक खुशी से झूम उठे मगर कुछ ही दिनों बाद बीएसए ने ये फीस देने का आदेश पारित कर अभिभावकों को जोरदार झटका दिया है। आखिर बीएसए ने ऐसा क्यों किया ये चर्चा का विषय बना हुआ है।


बताते चलें कि लॉक डाउन मे जब स्कूल बंद हुआ तो बच्चों की पढ़ाई भी बंद हो गयी। इस बीच काम काज बंद होने से अभिभावकों की अर्थिक स्थित भी बद से बदत्तर हो गयी उन्हें फीस भरने का गम सताने लगा। जिसे देखते हुए टीम संघर्ष के संयोजक युवा समाज सेवी अभिषेक तिवारी ने अपने टीम के साथ मिलकर "पढ़ाई नही तो फीस नही" का मुहिम चलाया और आखिरकार ये मुहिम रंग लाई जिससे प्रभावित होकर बीएसए ने दिनांक 22 अप्रैल को कक्षा 01 से लेकर 08 तक के स्कूल प्रबंधकों को यह आदेश पारित किया कि लॉक डाउन के दौरान बंद हुए स्कूलों के छात्रों से फीस व वाहन शुल्क न लिया जाए। बताते चलें कि इस आदेश के बाद घबराये अभिभावकों ने चैन की सांस ली मगर ये सांस दिनांक 04 मई को तब अभी अभिभावकों को विचलित करने लगी जब बीएसए ने पुराने आदेश के साथ एक नया आदेश पारित कर यह दर्शाया कि लॉक डाउन में खराब आर्थिक स्थित देखते हुए उस दौरान फीस न देने की बात कही गयी थी मगर ये फीस लॉक डाउन के बाद देनी पड़ेगी जिसे सुनकर अभिभावकों के पैरों तले से जमीन खिसक गई। यहां ध्यान देने वाली बात यह है पहले क्या सोंचकर फीस न देने का आदेश पारित हुआ बाद मे ये आदेश कैसे बदल कर दूसरा रूप ले लिया। आखिर इसके पीछे क्या कारण है। यह सवाल सभी के दिलों को कचोट रहा है। 



 
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