जनपद बलरामपुर जिला मुख्यालय स्थित एम एल के पीजी कॉलेज के आई क्यू ए सी द्वारा आयोजित दो दिवसीय ई राष्ट्रीय संगोष्ठी का रविवार को विधिवत समापन हुआ। दो दिनों तक चले इस संगोष्ठी में लगभग 11 राज्यों के शिक्षाविदों ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति 2020 की प्रासंगिकता पर गहन चर्चा की गई।
महाविद्यालय के मीडिया प्रभारी देवेंद्र चौहान ने बताया कि रविवार को अंतिम दिन तीन सत्रों में संगोष्ठी आयोजित हुई। प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए अंतरराष्ट्रीय बौद्ध अध्ययन केंद्र सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो0 सुशील तिवारी ने कहा कि ज्ञान विश्व पर राज करने के लिए नहीं बल्कि मानवीय मूल्यों को प्राप्त करना लक्ष्य होना चाहिए। इसके माध्यम से हम अपने आपको पहचानने का प्रयास करें । इसके सही क्रियान्वयन की जिम्मेवारी हम सभी की है। अपने मूल से ही जुड़कर अपने स्व को समझ सकते हैं। मुख्य वक्ता जे एन यू दिल्ली के डॉ दीप नरायन ने कहा कि पूर्ववर्ती नीतियां अगले शिक्षा नीति की पूरक होती हैं।अतः जब तकनीकी में परिवर्तन हुआ है तो शिक्षा नीति में भी परिवर्तन आवश्यक है। इसके अतिरिक्त डॉ सीमा तिवारी व डॉ रमेश द्विवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। द्वितीय सत्र तकनीकी सत्र का रहा जिसकी अध्यक्षता डॉ डी एन पांडेय,रिपोर्टियर की भूमिका डॉ पी एच पाठक व डॉ पूर्णेश नारायण सिंह ने निभाई। समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए रामेश्वर इंस्टीट्यूट लखनऊ के निदेशक डॉ एस एन त्रिपाठी ने कहा कि बालक के विकास में भाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा पर बल दिया गया है। इसके सफल क्रियान्वयन में शिक्षकों, अभिभावकों, छात्रों, संस्थाओं सहित सभी की सक्रिय भूमिका होगी तो अवश्य ही शरीर, मन व आत्मा के समन्वय से बालको को कारगर शिक्षा प्रदान की जा सकेगी जो उनके लिए उपयोगी साबित होगा। प्राचार्य डॉ आर के सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि हमें पूर्ण विश्वास है कि दो दिनों तक चले इस संगोष्ठी से निकले विचार आने वाले दिनों में नई शिक्षा नीति को एक नया आयाम देगी। अतिथियों का परिचय डॉ अरविंद द्विवेदी, डॉ श्रीप्रकाश मिश्रा ने कराया। मुख्य नियंता डॉ पी के सिंह ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया जबकि संचालन आई क्यू ए सी के समन्वयक डॉ आर के पांडेय ने किया। संगोष्ठी में कई शिक्षाविदों ने अपने पेपर प्रस्तुत किये। इस अवसर पर डॉ मोहिउद्दीन अंसारी, डॉ सद्गुरु, डॉ अविनाश व डॉ अभिषेक का सराहनीय योगदान रहा । संगोष्ठी में लगभग 1400 से 1500 प्रतिनिधि ऑनलाइन जुड़े।
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