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कार्तिक मास में दीपदान करने से जन्म कुंडली में पित्र दोष से मुक्ति एवं दरिद्रता होती है नष्ट : पं. आत्मा राम



दीपदान से दीर्घ आयु और नेत्र ज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्र आदि की भी प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला व्यक्ति सौभाग्य युक्त होकर स्वर्ग लोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। यह सरलता से किया जाने वाला एक ऐसा वैदिक विधान है जो किसी यज्ञ से कम फल देने वाला नहीं है।

कार्तिक मास में दीपदान करने से यदि जन्म कुंडली में पित्र दोष होता है तो उससे मुक्ति मिलती है और सात पुस्तों तक के  पितरों का मोक्ष हो जाता है।

प्राचीन काल से वर्षा ऋतु में संत साधु गांव या नगर मे चातुर्मास के लिये रुकते थे जिससे उनके ज्ञान, तप तथा आद्यात्म का लाभ सभी लोगों को मिलता था। जिससे वे अपना आत्मिक विकास करते थे। हिंदु मास में कार्तिक मास को चतुर्मास का अंतिम मास माना जाता है। इस माह मे भजन पूजन तथा दान का विशेष महत्व माना जाता है। पूरे संसार का व्यापार व्यवहार लक्ष्मी नारायण की कृपा पर ही चलता है। बिना लक्ष्मी के संसार की कल्पना रेगिस्तान मे जहाज चलाने के समान है। एक तरह से यह मायावी जगत महालक्ष्मी के अनुसार ही गति करता है। महालक्ष्मी भगवान विष्णु को चरण सेविका है। जिनपर लक्ष्मी नारायण की कृपा है वे ही इस संसार मे सम्माननीय है। कार्तिक मास मे विष्णु लक्ष्मी का शास्त्रौक्त पूजन करने से दरिद्रता नष्ट होती है तथा समृद्धि आती है।

दीपदान का विशेष महत्व

कार्तिक मास मे दीपक का विशेष महत्व है। कार्तिक मास मे आकाशमंडल का सबसे बड़ा प्रकाशक ग्रह सूर्य अपनी नीच राशि तुला की ओर गमन करता है। जिससे जीवन मे जड़ता तथा अंधकार की वृद्धि होती है। इसीलिये इस पूरे मास दीपक के प्रकाश, जप, दान तथा स्नान का विशेष महत्व रहता है, ये सब करने से जातक पर लक्ष्मी नारायण की कृपा होती है।

शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा मे दीपदान का महत्व

कहते है दीपक प्रज्वलित करने से लक्ष्मी मां तथा सभी देवी देवताओं प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। जब सूर्य ग्रह अपनी नीच राशि पर जाते है उस समयावधि मे जल, शयन कक्ष, तुलसी तथा मंदिर मे दीपक लगाना सौभाग्य तथा लक्ष्मी की वृद्धि मे परम सहायक होता है। कहते है शाम और सुबह सूर्य के अभाव मे जहां दीपक का प्रकाश होता है वहां देवताओं का वास होता है।

तुलसी माहात्म्य

तुलसी भगवान विष्णु को परम प्रिय है तुलसी पवित्रता तथा भगवान विष्णु की कृपा

शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व बताया गया है। कार्तिक मास की महिमा देवों ने भी गाई है। हिंदी पंचांग के अनुसार कार्तिक मास वर्ष का आठवां महीना होता है कार्तिक मास को हिन्दू धर्म ग्रंथों धार्मिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। कार्तिक मास का पुण्यकाल अश्विन शुक्ल पूर्णिमा अर्थात शरद पूर्णिमा से ही आरंभ हो जाता है।

कार्तिक मास में व्रत, त्यौहार पूजा पाठ आदि के साथ दीप दान का भी विशेष महत्व है। चार महीने बाद जब भगवान विष्णु जागते है तो मांगलिक कार्यकर्मो की शुरुआत होती है। कार्तिक मास की समाप्ति पर कार्तिक पूर्णिमा होती है।

कार्तिक में दीप-दान का महत्व

ऐसा कहा गया है कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त हो जाता है।

कार्तिक माह में पहले पंद्रह दिन की रातें वर्ष की अंधेरी रातों में से होती हैं। लक्ष्मी पति विष्णु के जागने के ठीक पूर्व के इन दिनों में दीप जलाने से जीवन का अंधकार छंटता है।

जो व्यक्ति कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त होकर विष्णुलोक में विहार करता है।

जो लोग कार्तिक मास में श्रीहरि के मन्दिर में दूसरों के द्वारा रक्खे गये दीपों को प्रज्वलित करते हैं, उन्हें नर्क नहीं भोगना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि एक चूहे ने कार्तिक एकादशी में दूसरों के द्वारा रक्खे दीप को प्रज्वलित करके दुर्लभ मनुष्य जन्म लाभ लिया था।

समुद्र सहित पृथ्वी दान और बछड़ों सहित दुग्धवती करोड़ों गायों के दान का फल विष्णु मंदिर के ऊपर शिखर दीपदान करने के सोलहवें अंश के एक अंश के बराबर भी नहीं है। शिखर या हरि मन्दिर में दीपदान करने से शत-कुल का उद्धार होता है। 

जो व्यक्ति भक्ति सहित कार्तिक मास में केवल मात्र ज्योति -दीप्ति विष्णु मन्दिर के दर्शन करते हैं, उनके कुल में कोई नारकी नहीं होता। 

देवगण भी विष्णु के गृह में दीपदान करने वाले मनुष्य के संग की कामना करते हैं। 

कार्तिक-मास में, खेल खेल में ही सही विष्णु के मन्दिर को दीपों से आलोकित करने पर उसे धन, यश, कीर्ति लाभ होती है और सात कुल पवित्र हो जाते हैं। 

मिट्टी के दीपक में घी / तिल तेल डालकर कार्तिक पूर्णिमा तक दीप प्रज्वलित करें, इससे अवश्य लाभ होगा।

 कार्तिक मास में दीपदान कैसे करें 

कार्तिक मास में दीप दान करने के भी नियम हैं। दीप दान किसी नदी में, किसी मंदिर, पीपल, चौराहा, किसी दुर्गम स्थान आदि में करना चाहिए। भगवान विष्णु को ध्यान में रखकर किसी स्थान पर दीप जलाना ही दीपदान कहलाता है। दीप दान का आशय अंधकार मिटाकर उजाले के आगमन से है। मंदिरों में दीप दान अधिक किए जाते हैं।

         लेखक

पं. आत्मा राम पांडेय "काशी"

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