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BALRAMPUR...सुहागिन महिलाओं ने वट वृक्ष का किया पूजन


अखिलेश्वर तिवारी
जनपद बलरामपुर के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में चारों तरफ सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री व्रत रखते हुए बट वृक्ष का पूजन अर्चन किया। पूजन में शुद्ध देशी घी में बनाए गए पकवान मिठाई तथा ऋतु फल भेंट कर प्रसाद वितरण किया गया । मान्यता है कि वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु तथा संतानोत्पत्ति के लिए करती हैं ।


जिला मुख्यालय सहित तुलसीपुर तथा उतरौला तहसील मुख्यालयों कस्बों तथा ग्रामीण क्षेत्रों बड़े पैमाने पर महिलाओं ने समूह बनाकर वट वृक्ष का पूजन अर्चन किया। वट सावित्री व्रत पूजन में ऋतु फल, मिष्ठान तथा शुद्ध देसी घी में बनाए पकवान को अर्पित कर पति के दीर्घायु तथा संतान प्राप्ति की कामना को लेकर प्रार्थना किया । पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाने वाला वट सावित्री व्रत 10 मनाया गया। हर साल ये व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन आता है। कहा जाता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस लौटाने के लिए यमराज को विवश कर दिया था। इस व्रत वाले दिन वट वृक्ष का पूजन कर सावित्री-सत्यवान की कथा को याद किया जाता है। इस व्रत को उत्तर भारत के कई इलाकों जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में भी मनाया जाता है। वहीं महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में इसके 15 दिन बाद यानी ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। ऐसी भी मान्यता है कि पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- 'वट मूले तोपवासा' ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूपमें विकसित हो गई हो।

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