इमरान अहमद
मनकापुर गोण्डा:इस्लाम धर्म का पवित्र त्योहार ईद उल अजहा (बकरीद)अरबी कैलेंडर के आख़िरी महीने (जिल-हिज्जा)में मनाया जाता है। यह त्योहार त्याग व बलिदान की याद दिलाने वाला और उसका महत्व समझाने वाला महान पर्व है।इस दिन मुसलमान अल्लाह की राह में जानवरों की कुर्बानी देते हैं
मनकापुर जामा मस्जिद के पेश इमाम मौलाना मुनव्वर अली खान ने बताया कि पैग़ंबर हज़रत इब्राहीम से अल्लाह ने उसकी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी की माँग की थी। हज़रत इब्राहिम अपने बेटे हज़रत इस्माइल को सबसे ज़्यादा प्यार करते थे लिहाज़ा अल्लाह का हुक्म सुनकर हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे को ही अल्लाह की राह में कुर्बान करने का फैसला लिया। जब हज़रत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने लगे तो उन्होंने अपनी आँखों ने पट्टी बाँध ली ताकी बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी चलाते वक्त बेटे की मुहब्बत उनकी हाथों को रोक ना दे।और फ़िर बेटे की गर्दन पर छुरी चला दी।ये बात अल्लाह को बहुत पसंद आयी।और अल्लाह ने उसी वक्त फरिश्ते जिब्राइल को भेजकर इस्माइल की जगह एक दुंबे को ज़िबह करा दिया। तभी से दुनिया के हर उस मुसलमान (जो मालदार हो)पर कुर्बानी वाजिब (फर्ज) हो गया।कुर्बानी हलाल जानवर जैसे बकरा,भेड़,ऊंट की ही दी जाती है,और इस बात का ज़रूर खयाल रखा जाए की जिन जानवरों की कुर्बानी दी जानी है, उनको चोट ना लगी हो या वो बीमार ना हों।कुर्बानी के उन गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। जिसमें से एक हिस्सा खुद के लिए,दूसरा रिश्तेदारों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए होता है। इस बार बकरीद 21 जुलाई दिन बुधवार को मनायी जानी है,तो ऐसे में आप सभी से गुज़ारिश है की देश में चल रही कोरोना लहर को देखते हुए कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए नमाज़ अदा करें,व मुल्क की तरक्की,अमन वा शांति के लिए दुआ करें
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ