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गोण्डा:34 साल बाद भी गृह मंत्रालय से नहीं मिला न्याय!

 

18 वर्ष तक तिहाड़ जेल में कार्यरत रहने के बाद कर दिया गया था टर्मिनेट

2015 में मृत्यु के बाद पुत्र कर रहा पैरवी, नहीं हो रही सुनवाई

पीड़ित को नहीं किया जा रहा जीपीएफ व ग्रेच्युटी धनराशि का भुगतान

ए. आर. उस्मानी

गोण्डा। करीब 18 साल तक तिहाड़ जेल में कार्यरत रहे व्यक्ति को बिना किसी पूर्व सूचना के टर्मिनेट कर दिया गया। 


इससे हताश होकर पीड़ित ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। करीब 14-15 वर्ष तक मुकदमा लड़ा लेकिन न्याय नहीं मिला और वह स्वर्ग को सिधार गया। इसके बाद उसके पुत्र ने न्याय के लिए पैरवी शुरू की। करीब 34 साल गुजर गये लेकिन इंसाफ की उम्मीद नजर नहीं आ रही है।


     मामला गोण्डा जिले के मोतीगंज थाना अंतर्गत कहोबा गांव का है। उक्त गांव के निवासी मल्हू सिंह वर्ष 1969 में तिहाड़ जेल नई दिल्ली में नौकरी ज्वाइन किए, लेकिन वह करीब 18 वर्ष तक ही कार्यरत रहे। मल्हू सिंह को अकारण ही बिना किसी पूर्व सूचना के 03.04.1987 को विभाग द्वारा टर्मिनेट कर दिया गया। इस कार्रवाई से मल्हू सिंह हतप्रभ रह गया और उसने तिहाड़ जेल के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय के आलाधिकारियों से न्याय की गुहार लगायी, लेकिन निराशा ही हाथ लगी।


 इस पर उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मल्हू सिंह ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील दायर की और करीब 14-15 साल तक मुकदमा लड़ा, लेकिन न्याय नहीं मिला।


 अलबत्ता पीड़ित की पैतृक संपत्ति तक मुकदमे की पैरवी में बिक गयी। इस बीच वर्ष 2015 में मल्हू सिंह की मृत्यु हो गई। ऐसे में परिवार के समक्ष बड़ा संकट खड़ा हो गया। पैतृक संपत्ति को बेचकर मल्हू सिंह के पुत्र प्रदीप सिंह ने न्याय के लिए पैरवी शुरू की।


 प्रदीप ने तिहाड़ जेल प्रशासन से अपने पिता स्वर्गीय मल्हू सिंह से संबंधित जीपीएफ और ग्रेच्युटी धनराशि के भुगतान के लिए टर्मिनेशन ऑर्डर तथा अन्य दस्तावेज मांगा, परंतु विभाग द्वारा टालमटोल किया जाता रहा।

 इस पर प्रदीप सिंह ने केंद्रीय सूचना आयुक्त, नई दिल्ली को प्रार्थना पत्र देकर न्याय की गुहार लगाई।


अतिरिक्त महानिरीक्षक कारागार भी नहीं दिला सके इंसाफ


उक्त प्रकरण में मुकेश कुमार, अतिरिक्त महानिरीक्षक (कारागार)/ प्रथम अपीलीय अधिकारी, दिल्ली ने आदेश दिया। उन्होंने कहा कि मामला सुना गया। 


सूचना जिस संबंध में मांगी गई है वह रिकॉर्ड स्थाई प्रवृत्ति का प्रतीत होता है तथा इसको प्रदान करना विभाग की जिम्मेदारी है। जनसूचना अधिकारी कारागार मुख्यालय तिहाड़ तथा जनसूचना अधिकारी कारागार संख्या-1 के द्वारा दी गयी जानकारी के आधार पर प्रतीत होता है कि वर्तमान में संबंधित जानकारी रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है। परिणाम स्वरूप आवेदक को स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं की जा सकी है। जनसूचना अधिकारियों के साथ वार्ता में पता लगा कि मांगी गई जानकारी करीब 30 साल पुरानी है। 

इसलिए जनसूचना अधिकारियों कारागार मुख्यालय तथा कारागार संख्या-1 को यह आदेश दिया जाता है कि रिकॉर्ड को ढूंढने का एक बार फिर से प्रयास किया जाए। यह प्रयास आदेश प्राप्ति के 7 दिनों के भीतर हो जाना चाहिए तथा इसकी सूचना अपीलकर्ता को भी दी जानी चाहिए।

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