एस के शुक्ला
प्रतापगढ़। मित्रता अब मात्र स्वार्थ पर टिक गई है, लेकिन मित्रता से बड़ा कोई संबंध नही है। मित्रता अपने आप में एक परिपूर्ण रिश्ता है। भागवत में श्रीकृष्ण व सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इस संसार को सच्ची मित्रता का पाठ पढ़ाया है। उक्त बातें नगर के बी एन मेहता संस्कृत पाठशाला में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस बाल व्यास ओम जी महाराज ने कही।कथावाचक ने कहा कि सुदामा गरीबी की मार झेल रहे थे। उनकी पत्नी ने कहा स्वामी द्वारकाधीश आपके बचपन के मित्र है। आप उनके यहां जाएंगे, तो श्रीकृष्ण आपकी मदद जरूर करेंगे। पत्नी की बात सुन सुदामा ने कहा विपत्तियों में कहीं नहीं जाना चाहिए। अगर मैं वहां जाता हूं, तो मेरे पास कुछ ले जाने के लिए नही है। पत्नी पड़ोस के घर से दो मुठ्ठी चावल लेकर आती है और अपने आंचल में बांधकर सुदामा को देकर श्रीकृष्ण के पास भेजती है। द्वारपाल श्रीकृष्ण को बताते हैं कि एक भिखारी आया है। कह रहा है कि कृष्ण मेरा मित्र है और अपना नाम सुदामा बता रहा है। यह सुनते ही श्रीकृष्ण नंगे पांव दौड़ते हुए सुदामा के पास पहुंचे और गले लगा लिया। यह प्रसंग सुनकर कथा प्रांगण में बैठे श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।इस अवसर पर शयाम जी, नंद कुमार, संतोष कुमार,राज कुमार सिंह, महेंद्र तिवारी, अखिलेश दूबे, अरूण पाण्डेय, पारस नाथ मिश्रा, श्रीमती सीता, नीलम आदि श्रद्धालु मौजूद रहे।
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