प्रतिवर्ष बाढ़ और कटान का दंश झेलते हैं लोग
मुफलिसी में सड़कों किनारे जीवन गुजार रहे पीड़ित
विधानसभा चुनाव में बाढ़ और कटान भी बनेगा मुद्दा
आयुष मौर्य
धौरहरा खीरी।चुनाव आते ही विधान सभा धौरहरा में नेताओं के वादों में बाढ़ और कटान का मुद्दा प्रमुखता से उभरता है ।
चुनाव दर चुनाव जनप्रतिनिधि समस्या समाधान का वादा कर चुनाव तो जीत लेते है ।पर समस्या जस की तस बनी हुई है ।फाइल फोटो
जिले की धौरहरा विधानसभा बाढ़ से हर साल प्रभावित होती है। नदियों की बेड़ियां अभी भी तहसील क्षेत्र को जकड़े हुए हैं।
नदियां प्रतिवर्ष अपनी विनाश लीला दिखाती है । फिर भी तहसील क्षेत्र में बाढ़ और कटान की त्रासदी का सामना करने के लिए प्रशासन व जनप्रतिनिधि अभी तक कोई ठोस कार्य योजना नहीं बना पाए है।
जनप्रतिनिधि बाढ़ कटान से निजात दिलाने का आश्वासन दे विधानसभा तक पहुंचे पर चुनाव जीतने के बाद वादा , वादा ही रह गया ।
यहां साल दर साल घाघरा और शारदा नदियां तबाही मचाती हैं। हजारों लोग बेघर होते हैं और फसलों को भारी नुकसान होता है।
दुनिया मंगल ग्रह पर जमीनें खरीदने लगी और खीरी के लोग अपनी जमीनें और घर बचाने को जूझ रहे हैं।
बाढ़ की विभीषिका हर साल कई जानों की बलि लेकर शांत होती है। पर शासन स्तर से अभी तक ऐसी कोई योजना नहीं बनी जिससे यह समस्या खत्म हो सके।
खीरी जिले की धौरहरा तहसील का अर्थशास्त्र नदियां प्रति वर्ष बिगाड़ देती हैं। हर साल लाखों रुपये का फसली नुकसान होता है।
नदियों की भेंट चढ़ने वाली यह मोटी रकम अगर क्षेत्रवासियों की जेब तक पहुंचे। यहां अपने आप विकास की गंगा बहने लगे।
पर विकास की गंगा बहाने के लिए शासन/प्रशासन अभी तक ऐसी किसी ठोस योजना को अमलीजामा नहीं पहना सका है। जिससे बाढ़ और कटान की त्रासदी कम हो सके।
भले ही यहां के लोगों ने स्थानीय स्तर से लेकर पीएमओ तक आवाज पहुंचाई हो। पर आश्वासनों के अलावा जिले को अभी तक कुछ मिल नहीं पाया है।
फाइल फ़ोटो |
बनाए गए तटबन्ध भी है अधूरे
धौरहरा में घाघरा और शारदा की बाढ़ को काबू में करने के लिए ऐरा पुल से शारदानगर तक 28 किलोमीटर और ऐरा पुल से दूसरी तरफ 53 किलोमीटर लम्बा तटबन्ध जलिमनगर तक बना।
मगर अधूरा तटबन्ध आज भी लोगों की दिक्कतें बढ़ा रहा है। दोनों तटबन्ध कच्चे होने के कारण नदियों के तेज प्रवाह में खुद ही बह जाते हैं।
धौरहरा तहसील का परगना मुख्यालय फिरोजाबाद समेत डुंडकी , मोचनापुर , हुलासपुरवा , सरैया और पलिहा समेत कई बड़ी ग्रामसभाएं और उनके मजरे अपना वजूद खो चुके हैं।
यहां के कटान प्रभावित विस्थापित परिवार चकऱोडों और सड़कों के किनारे खेत खलिहानों में भारी असुरक्षा के बीच पड़े हैं। प्रशासन न तो विस्थापित परिवारों के लिए जमीन तलाश कर पाया है और न ही इनके पुनर्वास की दिशा में अभी तक कोई उल्लेखनीय काम नहीं कर सका है।
प्रशासन अभी तक किसानों और अन्य पीड़ितों को मुआवजा देने तक ही सीमित रहा है। कटान प्रभावितों को मिलने वाली सरकारी सहायता इतनी कम होती है कि उससे एक अदद छप्पर तक नहीं पड़ सकता।
सड़क से सत्ता तक हुए बवाल के बाद भी नहीं सुधरे हालात
दशकों से बाढ़ और कटान की पीड़ा झेल रहे लोगों ने स्थानीय अफसरों और अपने जन प्रतिनिधियों से लगातार गुहार लगाई।
मजबूरन लोग सड़क पर उतर आए और बीते दिनों हाइवे जाम कर दिया। आपदा से बचाव की गुहार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से भी इलाकाई लोगों ने की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बाढ़ का जायजा लेने धौरहरा आए भी। पर पीड़ितों को आश्वासनों के सिवा कुछ नहीं मिला।
बचाव के लिए चुनाव में हमेशा की तरह शायद इस बार भी बड़े बड़े वायदे किए जाएं। पर वे कब जमीन पर उतर सकेंगे यह भविष्य तय करेगा।
फिलहाल कटान प्रभावित परिवार अपनी बदहाली पर खुद को तसल्ली देने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहे हैं। बचाव और राहत के नाम पर अलग अलग योजनाओं में अरबों रुपए खर्च हो चुके हैं।
फिर भी इसका सीधा लाभ मिलता नहीं दिख रहा है।
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