अनन्त चतुर्दशी बड़े ही हर्सोल्लास के साथ मनाया गया, गणेश प्रतिमाओं का पूजन कर दी अंतिम विदाई



अलीम खान

अमेठी:भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में गणेशोत्सव मनाया जाता है। 


इस साल गणेश उत्सव की शुरुआत हो चुकी है। गणेश उत्सव का त्योहार पूरे 10 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। 


इस दौरान घर-घर बप्पा की मूर्ति स्थापित की जाती है और चारों ओर ‘गणपति बप्पा मोरिया’ के जयकारे सुनाई पड़ते हैं। 


लेकिन इसके बाद बप्पा की विदाई भी की जाती है। क्योंकि गणेश महोत्सव के आखिरी दिन विसर्जन की परंपरा होती है।


10 दिवसीय महोत्सव के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति का विसर्जन किया जाता है। 


लोग नदी, तालाब, समुद्र में गणपति की प्रतिमा विसर्जित करते हैं।


काशी प्रान्त अभाविप के पूप्रांत सहसोशल मीडिया संयोजक व सामाजिक कार्यकर्ता राहुल विद्यार्थी ने बताया कि गणपति विसर्जन की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई।


गणेश चतुर्थी पर्व के इतिहास बात करें तो बाल गंगाधर तिलक ने सबसे पहले महाराष्ट्र से इस पर्व की शुरुआत थी। इससे पहले भी गणेश चतुर्थी मनाई जाती थी। 


लेकिन लोग अपने घरों में ही गणेश जी की पूजा करते थे लेकिन पंडाल या फिर विशाल आयोजन नहीं किए जाते थे। बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में सबसे पहली बार महाराष्ट्र में धूमधाम और सामूहिक रूप से इस पर्व की शुरुआत की उन्होंने। 


अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें जन जन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए एक मंच की जरूरत थी। इसलिए उन्होने गणेश महोत्सव की शुरुआत की। 


गणेश महोत्सव बाद गणेश विसर्जन भी किया गया था। तब से ही गणपति विसर्जन किए जाने  परंपरा भी शुरू हो गई। 


मुसाफिरखाना में श्रद्धालुओं ने आखरी दिन  अशोक अग्रहरी, समरेन्द्र साहू , सौरभ साहू, लालू, रंजीत, संतोष चौरसिया, सुभम, राहुल गुप्ता, उमेश गुप्ता, संतोष अग्रहरी, अंकित सिंह, राजा, जयलाल, आयुष अग्रवाल, राजेन्द्र अग्रवाल, झब्बू,रविचंद्र अग्रवाल ,सुमित चौरसिया, विष्णु चौरासिया,आदित्य चौरसिया, सूर्यांश अग्रहरी सत्येंद्र मिश्र, नीरज अग्रहरी, आसुतोष, अनन्या , कौशिक आदि लोगो ने भंडरा प्रसाद ,नाच गाने व पूजन अर्चन किया ।

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