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ये इनायत मेरे मौला जरा मुझ पर कर दे..ऑल इंडिया मुशायरा में वतनपरस्ती का जलवा, 'कुछ इरशाद हो जाए' पुस्तक का हुआ विमोचन



कुलदीप तिवारी 

लालगंज प्रतापगढ़। ऑल इंडिया मुशायरा बज़्म ए शोआ ए अदब का मिन जानिब उमंग वेलफेयर सोसाइटी कटरा मेदनीगंज प्रतापगढ़ के बैनर तले एक अदबी मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें देश के कोने-कोने से आये अदब के नामचीन ख़िदमतगारों ने शिरक़त की।


इस मौके पर बज़्म शामिल ग़ज़लकारों की एक पुस्तक "कुछ इरशाद हो जाये" का विमोचन भी किया गया। इसकी सदारत मोहतरम जावेद ज़िया आइमी साहब ने तथा निज़ामत उस्ताद शाइर क़ासिम हुनर सलोनवी ने किया। 


मोहतरम ख़ुर्शीद अंबर साहब की जानिब से सजायी गयी इस नायाब महफ़िल में कानपुर से तशरीफ़ लाये शाइर शमीम दानिश ने पढ़ा- मेरी ग़ैरत तू चली जा किसी हाज़त के लिए, एक क़सीदा मुझे लिखना है हुक़ूमत के लिए। 


मक़सूद दर्द इलाहाबादी ने पढ़ा- मजबूर था क्या करता अल्लाह की मर्ज़ी थी, कमज़र्फ का मैं लेकर एहसान बहुत रोया। नफ़ीस अख़्तर सलोनवी ने कहा कि- साथ हिन्दू-मुसलमाँ का यूँ ही नहीं, छत बने वो तो दीवार हम हो गये। 


शकील फूलपुरी के शेर भी लोगों पर जादू करते नज़र आये उन्होंने कहा- काट लेते हैं फ़क़ीरों की भी ज़ेबें अक्सर, कितने कमज़र्फ़ हैं ख़ैरात चुरा लेते हैं। मुम्बई से तशरीफ़ लाये जनाब हुकुमचंद असग़र के पढ़ा- ये ग़ज़ल अस्ल में और कुछ भी नहीं, एक बहती नदी है ख़यालात की। 


डॉ. अनुज नागेन्द्र की शाइरी को ख़ासी तरजीह मिलती दिखी, उन्होंने पढ़ा- ये इनायत मेरे मौला ज़रा मुझपर कर दे। मेरी चादर मेरे पाँवों के बराबर कर दे। रियाजुद्दीन रियाज़ साहब ने पढ़ा- दयारे ग़ैर में पाया गया हूँ। 


मैं अक्सर ढूँढकर लाया गया हूँ। नागपुर से तशरीफ़ लाये शाइर शादाब अंजुम साहब से पढ़ा- सुख में वो साथ देगी भले दुख में दे न दे। दुनिया बुरी तो है मगर इतनी बुरी नहीं। 


युवा शाइर डॉ. दीपक रूहानी की ग़ज़लों को सामईन ने ख़ूब सराहा, उन्होंने सुनाया- ये क्या आदत तुम्हारी हो रही है। मेरे दुश्मन से यारी हो रही है। 


खरगोन से आये अब्दुल हमीद बशर साहब ने कहा- मेरी ख़ूबी पे रहते हैं यहाँ अहले ज़बाँ ख़ामोश, मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो गूंगे बोल पड़ते हैं। साबिर फरीदी साहब के पढ़ा- जिस दिल में मुहब्बत का खज़ाना नहीं होता, उसका कहीं दुनिया में ठिकाना नहीं होता। 


अहमद दानिश साहब ने पढ़ा-बेमकसद ही कभी-कभी तूफ़ान उठाना पड़ता है। हम ज़िन्दा हैं ये दुनिया को रोज़ बताना पड़ता है। 


लालगोपालगंज के मुमताज़ शाइर अफ़ज़ल इलाहाबादी ने पढ़ा- शब की पलकों पे ठहरे हुए आँसू की तरह, सुब्ह होते ही मैं को जाऊँगा जुगुनू की तरह।


 असलम कदीरी ने पढ़ा- चंद लम्हों की ख़ुशी के वास्ते, जाने कितने दिन हमें रोना पड़ा। हिन्दी-उर्दू के जाने माने ग़ज़लकार राजमूर्ति सिंह 'सौरभ' जी का शेर- आईना तोड़ा गया इसका गिला कुछ भी नहीं, ग़म तो ये है आइने से आइना तोड़ा गया। ताज़ा। 


तजम्मुल हुसैन ज़ाहिद साहब ने फ़रमाया- क्यों हैं चराग़ पा ये हवाएँ चराग़ पर, लगता है कोई कान हवाओं के भर गया। उस्ताद शाइर ख़ुर्शीद अंबर प्रतापगढ़ी के शेर लोगों के दिलों में पैबस्त हो गये उन्होंने पढ़ा- दुनिया को एतमाद में लाने के वास्ते, क्या-क्या नहीं दिखाते हैं अपने छछन्द लोग। 


इनके अलावा अब्दुल हमीद वासिफ, मोहम्मद सालिम आईमी के भी कलाम को लोगों ने ख़ूब पसंद किया। 


 सिराजुल हक लल्लू भाई की सरपरस्ती में रातभर चले इस अजीमोशान मुशायरे की शमा फरोज़ी हाजी फिरोज अख्तर ने किया। कन्वीनर मुशायरा एडवोकेट जिया उल हक साहब रहे। 


इस मौके पर शमशु जमा मंत्री, शोएब कुरैशी, हाजी नवेद आलम, हाजी नियाज अहमद, अमानुल्लाह ठेकेदार, हीरालाल बाबू, एहतेशाम उद्दीन नेता, मोहम्मद आरिफ ठेकेदार ,सद्दाम माजिद आदि लोग मौजूद रहे।

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