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धौरहरा में पुल बनवाने के लिए छात्रों द्वारा सड़क जामकर किए गए प्रदर्शन में हुई बड़ी कार्रवाई,50 नामजद समेत 25 अज्ञात लोगों पर दर्ज हुआ मुक़दमा



कार्रवाई को लेकर क्षेत्र में तरह तरह की शुरू हुई चर्चाएं

आयुष मौर्य 

 धौरहरा खीरी।धौरहरा क्षेत्र के सुजईकुंडा मार्ग पर दसियों वर्षों से टूटे पड़े पुल को बनवाने की पुनः मांग करते हुए बुधवार को जीजीआईसी व जीआईसी में पढ़ने वाले छात्रों ने सिसैया ढखेरवा मार्ग पर जाम लगाकर प्रदर्शन किया था। जो दोपहर में अधिकारियों से वार्ता के बाद धरना प्रदर्शन समाप्त भी कर दिया गया था। 


जिसके बाद इस मामले में नया मोड़ आ गया। जिसमें पुलिस ने रोड जाम करने को लेकर 50 नामजद समेत 25 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर कार्रवाई शुरू कर दी। जिसको लेकर क्षेत्र में तरह तरह की चर्चाएं व्याप्त हो गई है।

धौरहरा तहसील क्षेत्र में दसियों वर्षों से सुजईकुंडा मार्ग पर टूटे पड़े पुल की मांग को लेकर बुधवार को  सिसैया ढखेरवा मार्ग पर धौरहरा कस्बे के सिनेमा चौराहे व कस्बा तिराहे पर जीआईसी व जीजीआईसी के छात्र छात्राओं द्वारा सुबह जाम लगा दिया गया था।जो दोपहर बाद पुलिस व तहसील प्रसाशन के समझाने के बाद छात्रों ने प्रदर्शन बन्द कर सड़क पर धरना समाप्त कर अवागमन बहाल किया था। 


जिसको लेकर पुलिस प्रशासन ने रोड जाम करने के मामले में 50 लोगों को नामजद करते हुए 25 अज्ञात पर मुक़दमा दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। पुल बनवाने की मांग को लेकर हुए धरना प्रदर्शन को लेकर अचानक हुई कार्रवाई को लेकर जहां आरोपियों में अफ़रातफ़री का माहौल बना हुआ है ।


वहीं अचानक हुई कार्रवाई को लेकर पूरे क्षेत्र में तरह तरह की चर्चाएं भी व्याप्त होने लगी है। वहीं इस बाबत कोतवाली धौरहरा प्रभारी निरीक्षक विवेक कुमार उपाध्याय ने बताया कि सड़क जाम करने वाले 50 लोगों सहित 25 अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।


बताते चले कि धौरहरा टाउन के उत्तर धावर नाले पर 1986 मे पांच लाख की लागत से पण्डित पुरवा - सुजई कुण्डा मार्ग पर लगभग 30 मीटर लंबा पुल बना था। तब से करीब दस वर्ष तक लगभग दो दर्जन गांवों की 50 हजार आबादी के अलावा धौरहरा कस्बे व आसपास के लोग अपना सफर तय करते थे। 1996 में बाढ़ आई और पानी की धारा ने हल्की करवट ली तो पुल की दीवारें धराशायी हो गयी। 


क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से सन् 1997 में जिला पंचायत की तरफ से मरम्मत के लिए सवा लाख रूपए उपलब्ध करवाए गए । सरकारी धन व ग्रामीणों के श्रमदान से 1997-1998  में टूटे पुल की मरम्मत करवाई गई। क्षेत्रीय लोगों का आवागमन बहाल भी हो गया। पर 2002 मे आई भीषण बाढ़ ने पुल का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। बाढ़ पुल के दोनों किनारे बहा ले गई। 


जिससे पुल नाले पर तो खड़ा है। मगर किसी काम का नहीं है। धावर नाले का पुल टूटा होने की वजह से पंण्डित पुरवा,मंगरौली,लहसौरी पुरवा,टापर पुरवा,घोसियाना,सुजईकुण्डा,नज्जापुरवा,भटपुरवा,धारीदासपुरवा,हरसिंहपुर,सुनारनपुरवा,बिन्जहा और फुटौहापुरवा आदि गांवों के लोगों को भारी असुविधा होती है। 


जिसको लेकर जनप्रतिनिधियों के अस्वासनों के बाद भी पुल का सुधार नहीँ हो सका। जिसको लेकर बुधवार को छात्र छात्राओं ने दुबारा हाइवे जाम कर प्रशासन से पुल सही करवाने की मांग की थी।


बढ़ता ही जा रहा है किसानों छात्रों का दर्द

पुल के जरिए पारगमन न हो पाना किसानों के साथ साथ छात्र छात्राओं के लिए सबसे ज्यादा दुखभरा है। बाढ़ग्रस्त इलाका होने की वजह से क्षेत्र में गन्ने की पैदावार सबसे ज्यादा है। मिल तक या फिर गन्ना क्रय केंद्रों तक गन्ना पहुंचा पाना सबसे मुश्किल काम है। वहीं शिक्षा के लिए धौरहरा व जिला मुख्यालय पर आने जाने में छात्र छात्राओं को दिक्क़तें होती है।


 भारी भरकम लागत से बना पुल सफेद हाथी साबित हो रहा है। जब पानी कम पड़ता है। तब किसान अपने ट्रैक्टरों और बैलगाड़ियों को पानी में से निकाल लेते हैं। मगर नदी में पानी ज्यादा होने पर खेती किसानी के काम बाधित होते हैं।


उच्च शिक्षा से वंचित हैं नौनिहाल

प्रभावित इलाके में शिक्षा की दशा खराब है। नाला पार के गांवों में प्राइमरी स्कूल है। मगर बरसात के दिनों में स्कूल तक शिक्षकों की पहुंच नहीं हो पाती। 


गांव के प्राइमरी स्कूल तक पढ़ने के बाद नौनिहालों के लिए आसपास कोई सुविधा नहीं है। अभिभावक जोखिम भरे रास्तों के जरिए बच्चों को दूर के स्कूलों में भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जिस वजह से तमाम बच्चों की तालीम अधूरी रह जाती है।


स्वास्थ्य सेवाओं को भी लगा रहता है ग्रहण

पार इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं का भी बुरा हाल है। मरीजों को तत्काल इलाज उपलब्ध कराने की गरज से एम्बुलेंस 102 और 108 जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मगर रास्ता न होने की वजह से एम्बुलेंस मरीजों तक पहुंच नहीं पाती हैं। इन हालातों में गम्भीर मरीजों और प्रसूताओं को भारी असुविधा होती है। 


मरीजों को बैलगाड़ियों के जरिए नजदीकी अस्पतालों तक पहुंचाने में काफी वक्त जाया होता है। जो कभी कभी मरीजों की मौत की वजह बन जाता है। यही नहीं प्लस पोलियो अभियान के तहत भी टीमों और वैक्सीन का पार इलाके तक पहुंच पाना दुष्कर हो जाता है।

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