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तेज महेंद्रा सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में मनाया गया विजय दिवस



आनंद गुप्ता 

पलिया कलां खीरी:सरस्वती विद्या  मन्दिर इण्टर कॉलेज पलिया में भारतवर्ष की पाकिस्तान पर 16 दिसम्बर 1971 को भव्य विजय के उपलक्ष्य में 51 वीं वर्षगांठ को विजय दिवस के रूप में मनाया गया। 


इस अवसर पर विद्यालय के सह प्रबन्धक शिवपाल सिंह मातृ संगठन के कार्यकर्ता घनश्याम एवं सीमा जागरण मञ्च के जिला गोला के महामंत्री पवन सिंह उपस्थित रहे।  


विद्यालय की वन्दना सभा में मां के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन के पश्चात छात्र छात्राओं को सम्बोधित करते हुए विद्यालय के प्रधानाचार्य वीरेन्द्र वर्मा ने बताया कि आज ही  के दिन 51 वर्ष पूर्व भारत के जांबाज सैनिकों ने भारत माता के गौरव को बढ़ाते हुए विजय का परचम लहराया। 


पाकिस्तान अपने जन्म के साथ  सन 1947 से ही अपने पैतृक देश भारत को अपना विरोधी मानकर छुटपुट हमले करता रहा है। पूर्वी पाकिस्तान की जनता पर पाकिस्तान की सरकार के लोगों ने ही दबाना शुरू कर दिया सेना से आतंकित होकर पूर्वी पाकिस्तान का जन मानस भयभीत होकर पलायन करने को मजबूर होने लगा।  


पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में पूर्वी पाकिस्तान की लगभग 10 लाख सामान्य जनता पलायन करके रहने लगी। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के सामान्य जनों को सेना की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। 


इन लोगों ने मुक्ति वाहिनी सेना का गठन किया। पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए, उनका शोषण दुर्व्यवहार महिलाओं का शीलभंग एवं हत्या करना आम बात हो गई। 


भारत की तरफ से पूर्वी पाकिस्तान की जनता को आन्तरिक सहयोग के कारण पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को अमृतसर, आगरा आदि कई शहरों पर वायु सेना से हमला किया।  यहीं से युद्ध की शुरुआत हुई।  


भारतीय सेना की अगुवाई करते फील्ड मार्शल मानेक शॉ ने युद्ध की घोषणा कर दी 13 दिन तक चले इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा। 


पूर्वी पाकिस्तान के रूप में उसका एक अंग भी कट गया और पूर्वी पाकिस्तान को नए देश के रूप में मान्यता मिली।  अतः 16 दिसंबर का दिन भारत के लिए विजय दिवस के साथ बांग्लादेश का उद्भव दिवस भी है। 


इस भीषण युद्ध में भारतीय सेना के 39000 जवान शहीद हुए तथा 98500 जवान घायल हुए। पाकिस्तान की सेना के लगभग 500000 जवान मारे गए। भयंकर युद्ध की विभीषिका से डरकर जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने अपने 93000 सैनिकों के साथ हथियार डाल दिए। 


पाक सेना के इस महासमर्पण के साथ ही पाक सेना के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ गया। जनरल नियाजी 1932 में ब्रितानी फौज में भर्ती हुए और 1942 में उन्हे कमीशन मिला। 


ब्रितानी सेना के लिए अनेक साहसिक कारनामे दिखाए इसके लिए उन्हें कई खिताब मिले इनमे मिलिट्री क्रॉस भी शामिल है। ब्रितानी सेना में रहकर उन्होंने जापान में भी अपना साहस दिखाया। 


इसके लिए उन्हें टाइगर नियाजी का खिताब मिला। 1965 के युद्ध में भी उन्होंने साहसिक परिचय दिया। परन्तु 1971 के युद्ध में उन्हे भारतीय जांबाजों के सामने हथियार डालने पड़े। 


आज विजय दिवस के इस अवसर पर हम सभी को सीख लेनी है कि दिसम्बर के माह और शियाचिन में माइनस ताप में भी हमारी सेना का शौर्य डिगता नहीं। हम सभी के लिए गर्मी, लू, वर्षा शीत आदि ऋतुएं उत्सव की तरह आएं। 


उनसे न घबराते हुए नित्य विद्यालय आने का स्व संकल्प हो। अब भारत के लिए जीने का समय है। अतः अपना शारीरिक प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करते हुए स्वस्थ मस्तिष्क में सकारात्मक चिन्तन का आधार बनाकर अध्ययन में डटना है। 


तभी इस दिवस को त्योहार के रूप मनाने की सार्थकता सही साबित होगी। भारत माता के तीव्र जयघोष के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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