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स्वदेश सरस्वती विद्या मन्दिर में मनाई गई बाल गंगाधर तिलक जयन्ती



आनंद गुप्ता 

रायबरेली महाराजगंज विद्या भारती विद्यालय स्वदेश सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज में आज तिलक जयन्ती के शुभ अवसर पर कन्या भारती  द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया।

मां सरस्वती एवं भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन के पश्चात बाल गंगाधर तिलक के चित्र पर माल्यार्पण कर वन्दना पश्चात कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। जन्म दिवस पर उनके बारे में माही, गुड़िया, रफा, एवं गरिमा ने विस्तार से बताया। कन्या भारती की छात्रा माही ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि के चिक्कन गांव में हुआ था। पिता गंगाधर रामचन्द्र तिलक एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। अपने परिश्रम के बल पर पाठशाला के मेधावी छात्रों में बाल गंगाधर तिलक की गिनती होती थी। वे पढ़ने के साथ-साथ प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम भी करते थे। अतः उनका शरीर स्वस्थ और पुष्ट था।

 

सन्‌ 1879 में उन्होंने बीए तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। घर वाले और उनके मित्र-सम्बन्धी यह आशा कर रहे थे कि तिलक वकालत कर धन कमाएंगे और वंश के गौरव को बढ़ाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ,  तिलक ने प्रारम्भ से ही जनता की सेवा का व्रत धारण कर लिया था। वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अपनी सेवाएं पूर्ण रूप से एक शिक्षण संस्था के निर्माण को दे दीं। सन्‌ 1880 में न्यू इंग्लिश स्कूल और कुछ साल बाद फर्ग्युसन कॉलेज की स्थापना की।

अपने सम्बोधन में छात्रा गुड़िया ने कहा कि तिलक जी हिन्दुस्तान के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वे पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई। रफा ने बताया कि लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारम्भ किया। इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया। गरिमा ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि तिलक जी सच्चे जननायक थे जिनको लोगों ने आदर से लोकमान्य की पदवी दी थी। अन्त में विद्यालय के प्रधानाचार्य ने भैया बहनों को उनके जीवन से सीख लेकर अपने जीवन में राष्ट्र देवोभव की भावना से प्रेरित होकर स्वदेश को विश्व गुरु बनाने की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम का सञ्चालन आचार्य धर्मेन्द्र ने किया। इस अवसर पर समस्त आचार्य परिवार एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

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