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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी दम्पति की जेल से रिहाई कहीं भाजपा का ब्राह्मण कार्ड तो नहीं?उनकी रिहाई से पूर्वांचल की इन 9 सीटों पर पड़ेगा असर

 


उमेश तिवारी

महराजगंज: बाहुबली नेता और पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी तथा उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की आगामी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जेल से रिहाई को लोग भाजपा के ब्राह्मण कार्ड के रूप में देख रहे हैं। वर्तमान में ब्राह्मण मतदाता योगी आदित्यनाथ को लेकर   भाजपा से बेहद नाराज हैं जो आगामी लोकसभा चुनाव में चुनाव में भाजपा के खेल को बिगाड़ सकते हैं। ऐसे में अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई से इन 9 सीटों गोरखपुर, महराजगंज, बांसगांव, कुशीनगर, देवरिया, सलेमपुर, संतकबीर नगर ,बस्ती और डुमरियागंज लोकसभा सीट पर भाजपा को काफी लाभ मिल सकता है। इतना ही नहीं आगे और भी कद्दावर ब्राह्मण चेहरे भाजपा खेमे में देखे जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं।

बताते चलें कि साल 2007  में सपा की सरकार ने जब योगी आदित्यनाथ को फर्जी मुकदमे में जेल भेजा था तब पहले से जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी से उनकी नजदीकियां बढ़ती गई और दोनों का संबंध अत्यंत प्रगाढ़ होता गया। उस समय अमरमणि त्रिपाठी की सेवा से योगी आदित्यनाथ काफी प्रभावित हुए। ऐसे में चर्चा है कि उसी एहसान के बदले योगी जी ने अमर मणि त्रिपाठी दम्पति की रिहाई का रास्ता साफ कर दिया। हालांकि अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई सुप्रीमकोर्ट के आदेश के तहत राज्य सरकार ने किया है ऐसे सिर्फ योगी आदित्यनाथ पर आरोप- प्रत्यारोप करना पूरी तरह से गलत है। अमर मणि त्रिपाठी की रिहाई से विरोधी पार्टी की चूलें हिल गईं हैं इस लिए तरह - तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं।

बता दें कि अमरमणि त्रिपाठी की आगे की राजनीति जो भी हो वह और उनका पूरा कुनबा 2027 तक तो फिलहाल भाजपा का विरोध नहीं करेगा। ऐसी संभावना भी जताई जा रही है कि आने वाले लोकसभा चुनाव और 2027 के विधान सभा चुनाव में उनके परिवार किसी न किसी सदस्य को भाजपा से टिकट दे सकती है? वैसे तो आजीवन कारावास की सजा होने के नाते अब अमर मणि त्रिपाठी कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।

बता दें कि अमरमणि त्रिपाठी साल 1978 - 79 से सक्रिय राजनीति में हैं जब इंदिरा गांधी हासिए पर थीं। उसी समय इंदिरा गांधी ने उस वक्त के केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री भारत सरकार माखनलाल फोतेदार के कहने पर पूर्वांचल में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए पंडित हरिशंकर तिवारी को बागडोर सौंप दी। फिर क्या था कांग्रेस को मजबूत करने के लिए पूर्वांचल में पंडित हरिशंकर तिवारी का धूंआधर और तूफानी दौरा शुरू हो गया। इस दौरे ने अमर मणि त्रिपाठी जैसै कई लोगों को राजनीति में सक्रियता दिलाई।

हालांकि अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने के लिए उन्होंने अपने गुरु और पिता तूल्य पूर्व मंत्री पंडित हरिशंकर तिवारी का आशीर्वाद लेकर साल 1981 में हुए उपचुनाव में सीपीआई के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा और यह चुनाव निर्दलीय वीरेन्द्र प्रताप शाही से मामूली मतों के अंतर से हार गए। यह सीट एक समझौते के तहत कांग्रेस द्वारा अमृत पाद डांगे की पार्टी सीपीआई को रोजादेश पांडे के कहने पर दे दी गई थी। रोजादेश पांडे सीपीआई की वरिष्ठ नेता थीं और इंदिरा गांधी से उनके बहुत नजदीकी संबंध थे। उन्होंने अमर मणि त्रिपाठी को यह सीट समझौते में दिला दी। रोजादेश पांडे अमरमणि के समर्थन में स्वयं नौतनवां चुनाव प्रचार में आईं थी।इस चुनाव में हार के बाद भी अमर मणि त्रिपाठी ने खुद को एक मजबूत राजनैतिक व्यक्ति के रूप में स्थापित कर लिया था।

साल 1984 में सोनौली में सरदार अजीत सिंह की हत्या के बाद 1985 में जो चुनाव हुआ उसमें अमर मणि त्रिपाठी को पुनः हार का मुह देखना पड़ा। वीरेंद्र प्रताप शाही मेनका गांधी की पार्टी राष्ट्रीय संजय मंच से पुनः चुनाव जीत कर दूसरी बार विधायक बने। लेकिन जब 1989 का चुनाव आया तो वीरेंद्र प्रताप शाही ने लक्ष्मीपुर विधानसभा से संन्यास ले लिया। इस चुनाव में उनके दाहिने हाथ रहे कुंवर अखिलेश सिंह चुनाव लड़े और अमर मणि त्रिपाठी से हार गए। पहली बार चुनाव जीतने के बाद अमरमणि त्रिपाठी का मनोबल बढ़ने लगा। लेकिन  दो साल के बाद सरकार गिर गई और 1991 में पुनः चुनाव हुआ और इस चुनाव में अमर मणि त्रिपाठी को हराकर कुंवर अखिलेश सिंह पहली बार विधायक बन गए। 1993 में भी अमर मणि को हार का सामना करना पड़ा और कुंवर अखिलेश दूसरी बार विधायक बने। लेकिन अमर मणि हार नहीं माने। साल 1996 , 2002 में चुनाव जीते ही 2007 में अमर मणि त्रिपाठी जेल से लड़कर पुनः चुनाव जीते। और हैट्रिक लगाये। आजादी के बाद अब तक यहां की जनता ने अमर मणि त्रिपाठी को जितना प्यार और स्नेह दिया बाकी किसी को नहीं मिला। 20 साल जेल में रहने के बाद भी आज अमर मणि त्रिपाठी नौतनवां वासियों के दिलों की धड़कन बन गए हैं। इन तीनों चुनावों में अखलेश के अनुज कुंवर कौशल उर्फ मुन्ना सिंह सपा से चुनाव लड़े पर हार गए। लगातार तीन बार चुनाव हारने के बाद कुंवर कौशल उर्फ मुन्ना सिंह सपा का दामन छोड़ कांग्रेस में चले गए और उन्होंने साल 2012 में जनता से अपील की कि आप लोगों ने मुझे तीन बार बाप से तो हराया ही क्या इस बार बेटे से भी हरा देंगे। भावुकता पूर्ण यह अपील मतदाताओं ने दिल पर ले लिया और मुन्ना सिंह चुनाव जीत गए। इस चुनाव में अमर मणि त्रिपाठी के बेटे अमन मणि त्रिपाठी मुन्ना सिंह से चुनाव हार गए। पुनः 2017 का चुनाव हुआ तो अमन को किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया। अमन निर्दल चुनाव लड़े और मुन्ना सिंह को लगभग 22 हजार वोटों के भारी अंतर से हरा दिया। इस चुनाव में अमन मणि को करीब 80 हजार वोट मिले थे।

लेकिन 2017 के चुनाव बसपा से लड़े अमन मणि को तीसरे स्थान पर रहकर संतोष करना पड़ा। मुन्ना सिंह दूसरे स्थान पर चले गए। निषाद भाजपा गठबंधन से 90 हजार वोट पाकर ऋषि त्रिपाठी चुनाव जीत गए।

जेल के अंदर हों या बाहर अमरमणि त्रिपाठी अपने 40 साल के राजनीतिक कैरियर में हमेशा भाग्यशाली साबित हुए हैं। यूपी की राजनीति में इन दिनों एक सवाल गूंज रहा है। क्या यूपी के पूर्व मंत्री और चार बार के विधायक रहे अमर मणि त्रिपाठी अपना दबदबा फिर से हासिल कर सकते हैं? 

आपको बता दें कि वह राज्य की सभी चार प्रमुख पार्टियों (कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और बीजेपी) के सदस्य रह चुके हैं। अमरमणि त्रिपाठी को कभी यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र के सबसे बड़े ब्राह्मण नेताओं में गिना जाता था। अमरमणि ने पहली बार अपनी ताकत तब साबित की जब उन्होंने गोरखपुर के बाहुबली ठाकुर नेता वीरेंद्र प्रताप शाही से चुनावी दंगल में मुकाबला किया। वह वीरेंद्र प्रताप शाही के खिलाफ 1981 और 1985 के विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन यूपी की दो प्रमुख जातियों के नेताओं के बीच मुकाबले ने उन्हें ब्राह्मण चेहरे के रूप में स्थापित कर अगला चुनाव जिता दिया। इसके बाद वह 1989, 1996, 2002 और 2007 में महाराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीते। परिसीमन के बाद नौतनवां सीट से 2007 में जीत हासिल की।

योगी सरकार ने दिए रिहाई के आदेश

2003 में अमरमणि को मधुमिता शुक्ला की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया। उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। लेकिन, 2017 के अंत में उनके बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने अपने पिता और दोनों बहनों (तनुश्री त्रिपाठी, अलंकृता मणि त्रिपाठी) के प्रभाव की बदौलत नौतनवां से विधान सभा चुनाव जीता। अब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दोषियों की समय पूर्व रिहाई के लिए बनाई गई नीति के

तहत अमरमणि और मधुमणि त्रिपाठी की समय पूर्व रिहाई का आदेश दिया है।

बदली हुई राजनीति में होंगे कितने फिट ? 

अमरमणि को अब राजनीतिक दुनिया बहुत बदली हुई लग सकती है। गोरखपुर अब पूरी तरह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कब्जे में है। यूपी में अधिकांश राजनीतिक दल भाजपा के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। भाजपा भी आराम से एक हत्या के दोषी पर दांव लगा रही है। अमरमणि की रिहाई से ब्राह्मणों से भाजपा के संबंध और प्रगाढ़ होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

मधुमिता की बहन ने किया रिहाई का विरोध

आपको बता दें कि मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर इस कदम का विरोध का हवाला दिया है। अमरमणि पर गुमराह करने का आरोप लगाया है। निधि ने कहा है कि अमरमणि ने अपनी जेल की सजा का आधे से अधिक समय गोरखपुर के सरकारी अस्पताल बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में बिताया। उनकी रिहाई के उन्हें अपनी जान का खतरा होने का डर है। सपा मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने भी इस रिहाई का विरोध किया है। समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने अमरमणि को रिहा करने के भाजपा सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। उन्होंने इसे बिलकिस बानो मामले के आरोपियों की सजा माफ करने के बराबर बताया है। विधायक से लेकर हत्या के दोषी 

अमरमणि त्रिपाठी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने के लिए एक असामान्य रास्ता अपनाया। 1981 में सीपीआई के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा। जल्द ही उन्होंने खुद को एक मजबूत व्यक्ति के रूप में स्थापित कर लिया। लक्ष्मीपुर से लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद अमरमणि कांग्रेस में चले गए। 1989 में इस सीट से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनाव जीता। इसके बाद उन्हें अगला दिवंगत कांग्रेस के दिग्गज ब्राह्मण नेता हरि शंकर तिवारी के करीबी के रूप में देखा जाने लगा।इसके बावजूद, अमरमणि अधिक समय तक कांग्रेस में नहीं रहे। वह लोकतांत्रिक कांग्रेस में चले गये। 1996 में उन्होंने लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्मीपुर से त हासिल की। जब उनकी पार्टी भाजपा में शामिल हो गई, तो अमरमणि भाजपा के मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह तथा सपा में मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री बने। 2002 के विधानसभा चुनाव के समय तक अमरमणि बसपा में थे। अपनी सीट से दोबारा जीतने के बाद उन्हें मायावती सरकार में शामिल किया गया।

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