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गर्भावस्था के दौरान महिला की प्रसव पूर्व चार जांचे कराना जरूरी: डा. घनश्याम सिंह


अखिलेश्वर तिवारी
एंटी नेटल केयर (एएनसी) से पहचानी जाती है हाई रिस्क प्रेगनेंसी (एचआरपी)
समय रहते इलाज होने से बचाई जा सकती है मां और बच्चे की जान
बलरामपुर  ।। गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक माह ग्राम स्तर पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दौरान गर्भवती महिलाओं की जांच, टीकाकरण और आवश्यक सलाह के साथ खतरे वाली गर्भवती महिलाओं की पहचान की जाती हैं। एक महिला के लिए स्वस्थ्य बच्चे को जन्म देने के साथ ही जरूरी है कि वह भी स्वस्थ रहे। ऐसी स्थिति में मां की सही समय पर प्रसव पूर्व जांच होना आवश्यक है जिससे मां व बच्चा दोनों स्वस्थ रहें और समय रहते दोनों की जान बचाई जा सके।

                     मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ घनश्याम सिंह ने शुक्रवार को बताया प्रसव पूर्व जांचों को  ‘एंटी नेटल केयर’ कहते हैं। इन जांचों को कराना इसलिए भी जरूरी है ताकि समय से पता चल सके कि मां और बच्चे कितने स्वस्थ हैं। प्रसव पूर्व होने वाली जांचों से गर्भावस्था के समय होने वाले जोखिम को पहचानने, गर्भावस्था के दौरान रोगों की पहचान करने और उसकी रोकथाम करने में आसानी होती है। इन जांचों से हाई रिस्क प्रेगनेंसी (एचआरपी) के केस को चिन्हित किया जाता है, फिर उनकी उचित देखभाल की जाती है। प्रसव पूर्व जांचों में मुख्यतः खून, रक्तचाप और एचआईवी की जांच की जाती है। एंटी नेटल केयर (एएनसी) से गर्भावस्था के समय होने वाली जटिलताओं का पहले ही पता चल जाता है। गर्भावस्था के दौरान अगर मां को कोई गंभीर बीमारी होती है जैसे एचआईवी, तो समय रहते भ्रूण को बीमारी से बचाया जा सकता है। एनीमिक होने पर प्रसूता का सही इलाज किया जा सकता है और भ्रूण की सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है। 

क्या है (एचआरपी) हाई रिस्क प्रेगनेंसी
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. ए.के. सिंघल ने बताया उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था या हाई रिस्क प्रेगनेंसी उसे कहते हैं जिसमें मां और शिशु दोनों में सामान्य गर्भावस्था की तुलना में अधिक जटिलता विकसित होने की संभावना होती है। ऐसी महिलाओं को अन्य सामान्य गर्भवती स्त्रियों के मुकाबले ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन्हे चिकित्सक की देखरेख की ज्यादा जरूरत पड़ती है।

कैसे होती है एचआरपी की पहचान
हाई रिस्क प्रेगनेंसी की पहचान करने के लिए पूर्व की गर्भावस्था या प्रसव का इतिहास जानना जरूरी होता है, जिसमें पता लगाया जाता है कि पहला बच्चा आॅपरेशन या नार्मल डिलेवरी से जन्म लिया था, पिछले प्रसव के दौरान या बाद में अत्यधिक रक्तस्राव तो नहीं हुआ, गर्भवती को पहले से कोई बीमारी, उच्च रक्तचाप, शुगर, हाइपोथायराइड, टीबी, हार्ट डिसीज, वर्तमान गर्भावस्था में गंभीर एनीमिया, 7 ग्राम यूनिट से कम खून की मात्रा, ब्लड प्रेशर, गर्भावस्था के समय डायबिटीज का पता लगाकर इसकी पहचान की जाती है। 

गर्भवती महिला की प्रसव पूर्व चार जांचें
प्रथम चरण में गर्भधारण के तुरंत बाद या गर्भावस्था के पहले 3 महीने के अंदर जांच होती है। द्वितीय चरण में गर्भधारण के चैथे या छठे महीने में। तृतीय चरण में गर्भधारण के सातवें या आठवें महीने में तथा चतुर्थ चरण में गर्भधारण के नौवें महीने में जरूरी जांचे की जाती हैं।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक शिवेंद्र मणि त्रिपाठी ने बताया कि जिले में वर्ष 2018-19 में अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक एएनसी चेकअप के दौरान 1485 तथा वर्ष 2019-20 में अप्रैल 2019 से दिसम्बर 2019 तक 1205 हाई रिस्क प्रेगनेंसी केस चिंहित हुए थे जिनका समय से उपचार भी किया गया।

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