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स्त्री की पीड़ा


हर रात मुझे उस बंद कमरे में नोचा जाता, 
मेरे जिस्म के एक एक हिस्से को रौंदा जाता ,
जांघो के बीच से मुझे खंगाल कर भी उसे चैन नहीं आता ,
इंसानियत को छोड़ वह हर रात एक जानवर बन जाता ।

रितिका तँवर
    दिल्ली

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