Type Here to Get Search Results !

Bottom Ad

BALRAMPUR:चाउरखाता का ऐतिहासिक रामलीला मंचन


अखिलेश्वर तिवारी/वेद मिश्र
जनपद बलरामपुर में भारतीय संस्कृति व परंपराओं को मूर्ति रूप प्रदान करने में सहायक रामलीला मंचन शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों स्थानों पर किए जाने की परंपरा है । 

कई स्थानों पर नवरात्र के दौरान ही रामलीला मंचन किया गया । वहीं कई क्षेत्रों में इस समय रामलीला मंचन कार्यक्रम चल रहा है । 

जिला मुख्यालय से सटे हुए चाउरखाता छेत्र में श्री श्री 108 जय मां दुर्गे रामलीला संकीर्तन समाज द्वारा ऐतिहासिक रामलीला का मंचन विगत कई वर्षों से किया जा रहा है । 

रामलीला मंचन देखने के लिए जुट रही भारी भीड़ से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के अंदर रामलीला का प्रभाव बाकी है । 


रामलीला मंचन से भगवान राम के आदर्शों से लोगों को सीख लेने का मौका प्राप्त होता है । यहां के रामलीला का मुख्य खासियत यह है कि स्थानीय लोग ही विभिन्न पात्रों की भूमिका निभाते हैं । 

केवल मनोरंजन कार्यक्रम के लिए बाहर से कलाकार बुलाए जाते हैं । स्थानीय लोगों के आपसी सहयोग से ही रामलीला का मंचन कई दशकों से चल रहा है ।



श्री श्री 108 जय मां दुर्गे रामलीला संकीर्तन समाज के मीडिया प्रभारी निशांत श्रीवास्तव ने बताया कि विगत कई वर्षों से चाउरखाता क्षेत्र के अगरहवा पंचायत भवन के पास रामलीला का मंचन किया जा रहा है । 


नवरात्र के बाद प्रत्येक वर्ष रामलीला का मंचन होता है, जिससे कि अधिक से अधिक लोग रामलीला मंचन को देखकर भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण व भरत शत्रुघ्न के आदर्शों का अनुसरण कर सके । 22 अक्टूबर को प्रारंभ हुआ रामलीला मंचन कार्यक्रम 2 नवंबर को पूर्रणाहुती हवन के साथ संपन्न होगा । 



उन्होंने बताया कि रामलीला मंचन के सातवें दिन 28 अक्टूबर को विभीषण शरणागति से अंगद रावण संवाद तक के चरित्र का मंचन किया गया । 


रावण दरबार में विभीषण द्वारा नीतिगत सुझाव दिए जाने से क्षुब्ध होकर अहंकारी रावण ने अपने ही सगे भाई विभीषण के ऊपर पैरों से प्रहार करते हुए उसका तिरस्कार कर दिया । 


तिरस्कार के बाद विभीषण ने भगवान श्री राम के शरण में जाना उचित समझा और रामा दल में आकर शरण लिया । 


इसी बीच लंका पर चढ़ाई करने के लिए भगवान राम ने सागर पर पुल बांधने की योजना तैयार की । सागर ने अनुनय विनय नहीं माना, जिसके बाद भगवान राम ने कड़ा रुख अपनाया और बाद मे सागर ने स्वयं रास्ता देने का तरीका सुझाया । 


सागर पर पुल बांधने के बाद रामा दल के सभी वीर लंका के करीब पहुंच गए । वरिष्ठ बुद्धिजीवियों की सलाह पर अंतिम चेतावनी देने के लिए रावण दरबार में बाली के बुद्धिजीवी पुत्र अंगद को लंकापुरी भेजा गया । 


अंगद ने न सिर्फ रावण के दरबार में सभी को ज्ञान देते हुए सुझाव दिया, बल्कि ब्राह्मण दरबार में मौजूद तमाम बीर व महावीरों को उनके बल का एहसास भी दिला दिया । 


अंत में अंगद रावण को चेतावनी देकर रामा दल में वापस पहुंच गए । इस पूरे मंजन में भाई द्वारा भाई का तिरस्कार से होने वाले नुकसान, हर काम अनुनय विनय से न होने का संदेश तथा अहंकार में सर्वनाश होने का संदेश छुपा हुआ है । 


रावण द्वारा अहंकार में अपने सगे भाई का तिरस्कार करना उसे भविष्य में भारी पड़ेगा । साथ ही उसका अहंकार ही विनाश का कारण बनेगा । 


रामलीला कार्यक्रम का सुचारू रूप से संचालन कमेटी द्वारा किया जा रहा है । 

कमेटी के अध्यक्ष शशिकांत त्रिपाठी, प्रबंधक श्रीराम पांडे, महामंत्री सुंदर बाबू सिंह, संरक्षक आजाद सिंह, उपाध्यक्ष डॉ विनय सिंह, विजय तिवारी, कोषाध्यक्ष अर्जुन उपाध्याय, ऑडिटर डॉक्टर विष्णु प्रताप सिंह, मंत्री राघवेंद्र शुक्ला, सचिव रानू सिंह, जनरल मैनेजर राकेश सिंह, मुख्यमंत्री दिनेश तिवारी, सहित समित के तमाम सदस्यों का बराबर सहयोग मिलते रहने के कारण मंचन सकुशल संपन्न हो पा रहा है । 


उन्होंने बताया कि मंचन में स्थानीय लोग ही पात्रों की भूमिका निभा रहे हैं ।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad



 

Below Post Ad

5/vgrid/खबरे