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गांजे बांजे के मध्य शोभायात्रा निकालकर श्रीराम जन्म भूमि की गई परिक्रमा

अयोध्या(वासुदेव यादव) राम नगरी अयोध्या में मंगलवार को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में विराजमान प्रभु श्रीरामलला का 73 वाँ प्राकट्य महोत्सव श्रीराम जन्मभूमि सेवा समिति के संयोजक अच्युत शंकर शुक्ला के संयोजकत्व द्वारा मनाया मनाया गया।


 जिसमे द्वितीय दिवस वेद साहिताओ का पाठ व् रामार्चा पाठ प्रभु श्रीरामलला के समक्ष संपन्न हुआ। साथ ही श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में विराजमान प्रभु श्रीरामलला कलश पूजन व आरती समिति के सदस्यों के द्वारा सम्पन्न हुआ।

         


आपको बताते चले कि पौष शुक्ल तृतीया 1949 को ही श्रीराम जन्मभूमि सेवा समिति द्वारा श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में विराजमान प्रभु श्रीरामलला का प्राकट्य व मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की गयी थी जिसके  प्रत्येक वर्षगाठ पर समिति पौष शुक्ल पक्ष की  तृतीया तिथि को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में विराजमान प्रभु श्रीरामलला का  प्राकट्य महोत्सव अनवरत मनाती आ रही है।


इस वर्ष समिति के कार्यक्रम में इसके मुख्य संयोजक अच्युत शंकर शुक्ल , श्रीरामलला विराजमान के पक्षकार रहे श्री महंत धर्मदास , वरिष्ठ व्यापारी नेता राधेश्याम गुप्त , समाजसेवी करन त्रिपाठी , राजेंद्र कुमार चौबे , रमेश त्रिपाठी, आचार्य संतोष वैदिक  , उमेश पाण्डेय , प्रवीन चतुर्वेदी इत्यादि लोग उपस्थित रहे।

        


पूजन के द्वितीय दिन दिनांक 05-जनवरी 2022 को विशाल शोभा यात्रा निकाली गयी जो श्रीराम जन्मभूमि संपर्क मार्ग से प्रारम्भ होकर  श्रीराम जन्मभूमि  चुतर्दिश मार्गो की परिक्रमा करते हुए वापस श्रीराम जन्मभूमि  संपर्क मार्ग पर समाप्त हुई । 


शोभायात्रा में हनुमानगढ़ी का शाही निशान , साकेतवासी बाबा अभिराम दास का चित्र , रथ पर श्रीराम -लक्ष्मण-भरत-शत्रुघन हनुमान जी के स्वरूप। श्रीरामलला का पूजित कलश -चित्रपट व मूर्ति रथ पर विराजमान रही। साथ ही शोभायात्रा में सकडो की संख्या वरिष्ठ जन मानस व संत मौजूद रहे। 

 इस समिति के संयोजक अच्युत शंकर शुक्ल ने कहा – “ आज ही के दिन जन्मस्थान पर श्रीरामलला प्रकट हुए  और विराजमान हुए।


 मान्यनीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में अंकित किया कि जन्मभूमि सेवा समिति सन  1901 से पूजा करती रही है व् सन 22/23 दिसंबर 1949 की रात भगवान प्रकट हुए। 


श्री राम जन्मभूमि सेवा  समिति एवं बाबा अभिराम दास जी द्वारा ही स्थापित मूर्ति स्वरूप गर्भगृह में विराजमान है और भव्य मंदिर निर्माण से पूज्य संतो का संघर्ष व्यर्थ नहीं गया।मान्यनीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में माना कि जन्मभूमि सेवा समिति सन 1901 से पूजा करती रही है।

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