अखिलेश्वर तिवारी/नरेन्द्र पटवा
जनपद बलरामपुर के विभिन्न क्षेत्रों में अनाज को बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग विशेषकर सल्फास का प्रयोग तेजी से किया जा रहा है ।
जानकारों का कहना है कि अनाज भण्डारण में सल्फास की गोलियां डालना सीधे कैंसर को दावत देना है ।
ऐसे रसायनों से इंसान की बीमारी से लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है और जुखाम से लेकर कैंसर तक हर बीमारी की पकड़ में ऐसा व्यक्ति जल्दी आता है।
प्रकृति से हमें तोहफे में मिले इम्यून सिस्टम में कमजोरी आती है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है।
कृषि बीज गोदाम प्रभारी डॉ जुगुल किशोर ने जानकारी देते हुए बताया कि एल्युमीनियम फास्फेट जिसे सल्फास कहा जाता है जिसका प्रयोग जानकारी के अभाव में किसान अनाज भण्डारण के समय उसमें करते हैं जो बिल्कुल ग़लत है।
जबकि आर्गनिक व देशी तरीका अनाज को सुरक्षित रखने का बिना खर्च मौजूद है।
नीम की पत्ती से लेकर मिर्च,हींग का प्रयोग कीटों से बचाने के लिए कारगर है लेकिन जल्दबाजी में किसान ऐसे रसायनों का इस्तेमाल कर अपने ही सेहत से खिलवाड़ कर रहा है।
उन्होंने बताया कि कपड़े में तीन चार तह के बीच हींग का टुकड़ा रखकर अनाज भण्डारण में दो तीन जगह रखने से कीड़े इसके गंध से पास नहीं फटकते और किसी तरह से नुकसान भी नहीं है।
इसी प्रकार यदि बीज संजो कर रखने हैं तो आप इन्हें सरसों एवं कड़ुवा तेल में मलकर राख में रखने से सालों साल तक कोई समस्या नहीं है।
अनाज भण्डारण करने की परंपरा हमारे देश में प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक विधि रही है ताकि अनाज सुरक्षित व पवित्र भी बनी रहे। आजकल टीन के पतरों से बनी टंकियों को अनाज रखने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है।
इस तरह के टंकियों में अनाज भण्डारण से पूर्व तीन चार दिन धूप में रखें और इसके भीतरी सतह में नीम के तेल व कपूर का लेप करें जिससे अंदर अंडे लार्वे खत्म हो जाए अनाज को सुखाकर रखें।
अगर हो सके तो प्याज, लहसुन, एवं तुलसी की सूखी पत्तियां भी डाल सकते हैं इससे भण्डारण किया गया अनाज सुरक्षित रहेगा।
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