श्रीराम कथा में सरस्वती जी महराज ने कर्म की श्रेष्ठता पर डाला प्रकाश
गौरव तिवारी
लखनऊ। भगवान् के प्रति निर्मल भाव की श्रद्धा तथा समर्पण प्राणी के जीवन को सुमंगल से भर दिया करता है।
मनुष्य सदैव अपने कर्म के अनुसार फल का उत्तरदायी हुआ करता है। उसे सदैव श्रेष्ठ कर्म के मार्ग पर चलते हुए प्रभु की भक्ति प्राप्त करने का पवित्र ध्येय रखना चाहिए।
उक्त सुविचार महामण्डेलश्वर स्वामी आचार्य अभयानन्द सरस्वती जी महराज ने अपने श्रीमुख से प्रकट किये।
लखनऊ के अर्न्तराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के सभागार में हो रही श्रीराम कथा में महामण्डेलश्वर जी ने कहा कि दुखाकार प्रवृत्ति से भगवताकार प्रवृत्ति ही मनुष्य को लोभ तथा भय व दुराचरण से मुक्ति दिला सकती है।
श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों का मधुर उद्धरण रखते हुए उन्होनें कहा कि भक्ति की श्रद्धा में मनुष्य प्रभु का सानिध्य स्वयं अनुभूति किया करता है।
स्वामी अभयानंद जी ने कहा कि रामचरित मानस में मानस गीता के ज्ञान का शाश्वत संदेश यही है कि मनुष्य को स्वयं अपने कर्म के अनुसार फल की अपेक्षा रखनी चाहिये।
उन्होनें कहा कि हमारे वेदान्त तथा दर्शन सदैव यह सिखलाते रहते हैं कि कोई भी मनुष्य न तो दूसरे को दुःख देने का कारक है और न ही वह दूसरे के सुख का उत्तरदायी हुआ करता है।
प्रत्येक मनुष्य अपने लिए कई जन्मों के पुण्य के प्रतिफल में धरा पर पहुंचकर अपने सुख और वैभव के लिए ही जीवन व्यतीत किया करता है।
उन्होनें कहा कि विषाद जब प्रभु के लिए निर्मलता मे होता है तो वह प्रसाद बन जाता है और यही विषाद जब अपने दुःख के लिए हुआ करता है तो यह जीवन मे अवसाद बन जाया करता है।
आध्यात्मिक कथा का संचालन आलोक जी ने किया। कथा का संयोजन हाईकोर्ट अवध बार एसोशिएसन के पूर्व महामंत्री पं. रामसेवक त्रिपाठी व प्रदेश के पूर्व गृह सचिव रमेशचंद्र मिश्र ने किया।
कथाश्रवण के लिए प्रतापगढ़ से भी श्रद्धालुओं का जत्था ऑल इण्डिया रूरल बार एसोशिएसन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानप्रकाश शुक्ल व संयुक्त अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष अनिल त्रिपाठी महेश की अगुवाई में सोमवार को पहुंचा।
कथा के पूर्व अरविंद कुमार मिश्र, प्रणव अग्निहोत्री, केके शुक्ल, डा. आलोक द्विवेदी, राजकुमार द्विवेदी, प्यारेमोहन चौबे ने व्यासपीठ का पूजन किया।
इस मौके पर विपिन शुक्ल, संतोष पाण्डेय, सरला त्रिपाठी आदि रहे।
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