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गोण्डा:चिराग तले अंधेरा:विश्व योग दिवस मना रहा है ,वही अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है योग जनक पतंजलि का जन्मभूमि







डॉ ओपी भारती

वजीरगंज गोण्डा:-पूरा विश्व  जहाँ एक तरफ विश्व योग दिवस मनाने जा रहा है वही योग के जनक पतंजलि की जन्मभूमि अपने बदहाली पर आंसू बहा रही होगी।


यहाँ पर  स्वामी भागवताचार्य के दिशा निर्देशन में कुछ स्थानीय लोगो द्वारा योग कर योग दिवस की इतिश्री कर ली जाएगी।


कोंडर ग्राम सभा की प्रधान गीता सिंह का कहना है कि प्रदेश ही नही देश के पटल पर पतंजलि जन्मभूमि को एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के पर्याप्त अवसर है।   


 जरूरत है तो शासन के दृढ़ इच्छाशक्ति की। निष्प्रयोज्य पड़ी जमीन पर कुछ लोगो का कब्जा भी है। ग्राम प्रधान गीता सिंह का कहना है कि इस परिसर में राम जानकी मंदिर और सम्मय माता मंदिर स्थापित है। राम जानकी मंदिर के नाम पर 2.5 बीघा जमीन है, लगभग इतनी ही जमीन आबादी के रूप में दर्ज है। 


साथ ही  60-70 एकड़ जमीन ग्राम समाज के रूप में दर्ज है। ग्राम समाज की जमीन पर भू माफियाओं की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। शासन चाहे तो इस बड़े भू- भाग पर एक अच्छा पर्यटन स्थल विकसित किया जा सकता है।


27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 21 जून को विश्व योगदिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे मंजूरी मिल गई, तब से 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।विश्व 21 जून 22 को आठवां योग दिवस मनाने जा रहा है।



योग का इतिहास:-


उत्तरप्रदेश के गोंडा जनपद में मुख्यालय से लगभग 33 किमी दूर सरयू की तलहटी में कोंडर  झील के किनारे स्थित शेषावतार योग के जनक महर्षि पतंजलि की जन्म भूमि की सुरम्य  छ्टा प्रकृति की गोद में अटखेलिया खेल रही है।


पतंजलि पुरी कोडर गांव के इर्द-गिर्द,  का प्राकृतिक वातावरण और भौगोलिक दशा पतंजलि के जन्म भूमि के साक्ष्य को बल दे रहे हैं। कोंडर झील के किनारे महर्षि पतंजलि के आश्रम के प्रति यहां की लोगों की आपार श्रद्धा व आस्था जुड़ी हैं। 


बताते हैं की यह ' गोनार्द ' की धरती होने के नाते महर्षि पाणिनि के ग्रन्थ ' अष्टाध्यायी' में पतंजलि को 'गोनर्दीय' नाम भी दिया गया हैं ।


इस स्थान का नाम  कोंडर कैसे पड़ा इसकी भी पीछे एक कहानी है । बताते हैं कि जहां पर महर्षि पतंजलि का जन्म स्थान  है वहां पर तीन विशालकाय  वृक्ष जिसमें पीपल बरगद, और लाहसोरा पेड़ थे इन तीनों पेड़ों के बीच में एक बहुत खोन्डर था उसी खोंडऱ के नाम पर इस स्थान का नाम कोंडर  पड़ा।

      

बदलते समय के साथ साथ सरयू नदी ने इस गोनर्द की भूमि से अपनी चंचलता का परित्याग कर दिया । और झील में सिमट कर रह गयी । 


कोडर निवासी सर्वदवन सिंह बताते हैं कि महर्षि पतंजलि उक्त वृक्षो के खोंडर में पर्दे के अन्दर से शिष्यों को ज्ञानोपदेश देते थे । इससे शिष्यों में गुरु की दर्शन की लालसा हुई । 

    

 नवे दिन बिना अनुमति के शिष्यों ने पर्दा उठाकर कोने से झांका तो सर्पाकार पतंजलि शिष्यो को भष्म होने का श्राप देकर खुद अदृश्य हो गए । 


' कोणदर्शेनेन रीयते क्षीयते पतंजलि यत्रस कोडर इति '। 

श्री पतंजलि जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष स्वामी डा. भगवदाचार्य ग्रंथों के प्रमाण भी बताते हैं  । वे कहते हैं की महर्षि पतंजलि आश्रम टीला और कोडर झील आज भी उतना मनोरम हैं । इससे लोगों की आस्था जुड़ी है, और लोग पूजन-अर्चन कर रहे हैं । 

     

न्यास के अध्यक्ष डा. भगवदाचार्य के अलावा अन्य स्थानीय नेताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र भेज कर कोडर गांव में राष्ट्रीय योग विश्वविद्यालय स्थापित करने की मांग की हैं । 


उन्होंने बाबा रामदेव को भी कहा कि बाबा रामदेव को पतंजलि के नाम से प्रसिद्धि मिली है उनको पतंजलि जी के जन्मभूमि को अंतर्राष्ट्रीय नक्से पर लाने के लिए प्रयास करना चाहिए।


योग के प्रणेता महर्षि पतंजलि के जन्म स्थली कोडर गांव में ' योगा ' को तो लोग भूल ही चुके हैं । संयुक्त राष्ट्र सभा के 177 सदस्य देशो के समर्थन से 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस  के रूप में मनाने का निर्णय पहले ही लिया जा चुका है और 21 जून 2017 से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है।

    


' गोनार्द ' नाम देने में भी योगदान


पतंजलि महाभाष्य के अनुसार उन्हें बार-बार ' गोनर्दीय ' कहे जाने एवम इस शब्द का अर्थ विचार करने के यह पाया गया कि यहां पर त्रिजटा नाम के ब्राहमण दीनता से दुखी होकर प्रभू श्री राम से दुख भोग रहे अपने परिवार के उनित वृत्ति की याचना की । 


बताते हैं की प्रभू ने कहां की आप डंडा सरयू के उस पा फेंके जहां तक डंडा जायेगा । वहां तक की भूमि के आप स्वामी होंगे ।


रामायण के अनुसार उस क्षेत्र में चक्रवर्ती अयोध्या नरेश की गोशाला व गोचरण भूमि थी । ब्राहम्मण ने प्रसन्न होकर पूरी शक्तिसे डंडा फेंका । जहां तक फेंका डंडा गया वह क्षेत्र गोनर्द के नाम से प्रसिद्ध हो गया । ब्राह्मण को वहां तक भूमि दान में दे दी गई ।


' यत्र स देशः गोनर्द तत्र भवः गोनर्दीयः पतंजलि '।

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