सुनील उपाध्याय
बस्ती । भक्ति मार्ग में कदम-कदम पर परीक्षा है। भगवान शंकर की कृपा के बिना श्रीराम के हृदय में प्रवेश संभव नही है। भगवान शिव और बीर हनुमान की कृपा से श्रीराम से सम्बन्ध स्थापित होता है। भगवान शिव ने श्रीराम कथा का जो अमृत पृथ्वीवासियों को दिया वह जन मानस का कलुष धो रही है। धर्म हमारे जीवन को पवित्र करता है। यह सद् विचार डॉ.अवधेश जी महाराज ने श्री बाबा झुंगीनाथ धाम में आयोजित 8 दिवसीय शतचण्डी श्रीराम महायज्ञ के दूसरे दिन व्यक्त किया।
श्रीराम कथा के विभिन्न सन्दर्भो काम, क्रोध, लोभ, मोह पर विस्तार से प्रकाश डालते हुये महात्मा जी ने कहा कि जीवन उसी का धन्य है जिसके हृदय में अहिल्या उद्धार और शेबरी के बेर खाने की सहजता है। श्रीराम कथा धन्य है जो मनुष्य को विवेक, त्याग के मार्ग पर चलना सिखाती है।
मानस किंकर आचार्य सिद्धार्थ ने भागवत महिमा का गान करते हुये कहा कि भागवत कथा मनुष्य को निर्भय बनाती है। पाप करते समय मनुष्य नहीं डरता, उसे भय तब लगता है जब पापों की सजा भुगतने का समय आता है। धु्रव जी मृत्यु के सिर पर पांव रखकर गये, परीक्षित ने स्वयं कहा मुझे अब काल का भय नहीं रहा। श्रीमद्भागवत धर्म के साधारणीकरण और जीवन के साथ ही मृत्यु सुधारने की कथा है।
आचार्य दुष्यंत ने कहा कि संसार में जड़ चेतन जो कुछ भी दृश्य अदृश्य है उसमें परमात्मा का वास है। यह सृष्टि ईश्वर की इच्छा पर संचालित हो रही है।
महर्षि बाला जी महाराज ने कहा कि जीव का धर्म है कि वह सहजता से शिव में विलय के लिये अपने आप को इस रूप में प्रस्तुत करे जिससे जीवन और जगत दोनों का कल्याण हो। ‘सियाराम मय सब जग जानी’’ जगत में ऐसा कुछ भी नही जो परमात्मा से भिन्न हो। भक्ति ही नही शत्रु भाव से भी जिसने परमात्मा को अपने चित्त में रखा उसका कल्याण हो गया। रावण, कंस, हिरण्यकश्यप सहित अनेक उदाहरण है जिन्हें परमात्मा ने मुक्ति प्रदान किया।
श्रीराम कथा में मुख्य यजमान पं. माता बदल पाठक, संयोजक धु्रवचन्द्र पाठक, ओम प्रकाश पाठक, जितेन्द्र पाठक, रामकेवल यादव, विमलेन्दु शुक्ल, कमला पाण्डेय, श्रवण शर्मा, खाजे मिश्र, अनिल पाठक, विनोद पाण्डेय, आशा राम यादव, श्रीमती कलावती पाठक, सावित्री सिंह, राम सुन्दर चौधरी, नरेन्द्रनाथ त्रिपाठी, रंगई सिंह के साथ ही बड़ी संख्या में भक्तगण उपस्थित रहे।


एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ