कृष्ण मोहन
गोण्डा:प्रशासन इस कोरोना की महामारी के दौर में कर्मचारियों एवं जनता को कोरोना की आग में झोंकने को तुली हुई है। इससे पहले भी प्रशासन गैरजिम्मेदाराना रवैया अपना चुका है लेकिन अब तो हद पार हो रही है।
प्रशासन यदि इसी तरह से गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाता रहा तो वह दिन दूर नही जब गैर प्रान्तों से आ रहे प्रवासी मजदूर एवं अन्य लोग कोरोना बम बनकर समाज को तहस नहस कर डालेंगे। बहुत स्पष्ट बात यह है कि ट्रेनों, बसों,ट्रको सायकिल व पैदल चल कर आरहे लोग सीधे अपने गांव घर जा रहे है। रास्ते मे कही कही औपचारिक स्क्रीनिंग की जा रही है कही वह भी नही की जा रही है।जबकि कोरोना से निपटने की जिम्मेदारी जिनके कंधे पर है वह चाहे स्वास्थ्य विभाग हो या जिला प्रशासन, सबको पता है कि कोरोना का व्यक्ति के शरीर मे प्रवेश करने से लेकर उसके लक्षण आने तक का समय 14 दिन का है। लेकिन लापरवाही इस कदर हावी है कि 14 दिन को कौन कहे 7 दिन भी लोगो को कोरेण्टाइन नही किया जा रहा है। कोरेण्टाइन के नाम पर मात्र औपचारिकता पूरी कर रजिस्टर भर कर होम कोरेण्टाइन के लिए छोड़ दिया जा रहा है। ये लोग सीधे अपने गांव अपने घर जा रहे है। इन होम कोरेण्टाइन किये गए लोगो मे जब तक कोरोना के लक्षण उभरेंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी, और पहले घर फिर गांव उसके बाद भयंकर रूप से समुदाय कोरोना के आगोश में समा चुका होगा। स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर, व कर्मचारी जो सी एच सी, पी एच सी पर तैनात है उनको भी बिना पूर्ण सुरक्षा के कोरोना की ड्यूटी में लगा दिया गया है। आलम यह है कि न तो इन कर्मचारियों को पी पी किट दिया गया है और न ही एन95 मास्क। कोरोना की लड़ाई लड़ते लड़ते यदि ये कर्मचारी संक्रमण की जद में आ गए तो इनके परिवार और बच्चो की देखभाल कौन करेगा । विशेष कर संविदा पर लगे डॉक्टर और कर्मचारी, जिनको न तो कोई फंड बोनस मिलता और न ही नियमित कर्मचारियों की तरह कोई अन्य सुविधा मिल रही है , जबकि सबसे ज्यादा काम इन्ही संविदा कर्मचारियों से लिया जा रहा है। संविदा कर्मचारी तो मुँह खोलते डरते है कि कहीं विभाग उनकी संविदा न समाप्ति कर दे। प्रशासन की लापरवाही अगर इसी तरह हावी रही और आ रहे प्रवासियों को कम से कम 14 दिनों के किये कोरेण्टाइन की व्यवस्था नही की गई तो प्रशासन आने वाले दिनों में इटली चाइना की भांति सिर्फ लाशें गिनने को तैयार रहे।
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