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हिंदी दिवस के अवसर लघु कथा:चांदी की करधनी

 

चांदी की करधनी

माई हो माई हमको भी पहने का है चांदी की करधनी ,यह है निम्मी का मनुहार अपनी मां से था 

रामरति मुंह बना कर बोली ,काली माई नही तो , नासपीटी

और ना जाने का,,,,,,,,,,,

लंबी लंबी सास लेकर   टीवी के रोग ने शरीर सब खा लिया था,बस जबान ही बाकी थी जो जब तक चल रही है तब तक,,,,,,,,,

बाकी तो एक सड़क के किनारे खड़ी लड़की फिर खड़ी हो जाएगी,,,

रामरति मन ही मन बुदुआई 

एक तो करधनी बची बा ओह को नज़र लगावत है,,,,,,,,,,,,,

फिर गलियों का अंबार ,

वह निरीह सी बिटिया नाक बहाती 

हुई बासी सुखी रोटी खा कर स्वर्ग के आनंद मे डूबकर मासूमियत से मुस्कुरा रही है ,बचपन। इसी का नाम है भोला भाला मासूम सा।।।।


नंदिता एकाकी

प्रयागराज

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