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कौशलेश सदन में विराट सन्त सम्मेलन हुआ आयोजित

अयोध्या(वासुदेव यादव) रामनवमी महोत्सव के मद्देनजर अयोध्या के कैकेईघाट स्थित कोशलेस सदन मंदिर के निकट रामानुजीयम के प्रांगण में विराट संस्कृत संत सम्मेलन का आयोजन हुआ।

   

संस्कृत संत सम्मेलन के आयोजक जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्या भास्कर जी महाराज संस्कृत सम्मेलन में आए हुए सभी विशिष्ट विद्वानों का माला पहनाकर व अंगवस्त्र भेंट कर स्वागत किया।

  

इस विराट संत सम्मेलन का आगाज त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया। 


 इस दौरान संस्कृत सम्मेलन का संचालन स्वयं जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्याभास्करजी महाराज ने किया। 


संस्कृत साहित्य सम्मेलन में आए हुए अतिथियों का स्वागत स्वागत गीत के माध्यम से गायन मंडल द्वारा किया गया।

  

 इस संस्कृत संत सम्मेलन में दर्जनों विशिष्ट संतो ने अपने अपने विचार रखें। संत सम्मेलन के माध्यम से संतो ने मौजूद भक्तगण को बताया कि संस्कृत भाषा एक ऐसी भाषा जिसमें वास्तविकता भरी पड़ी है। 


लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम आज अपनी इस अनमोल भाषा संस्कृत को भूल कर हिंदी अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं का प्रयोग अपने बोलने चालने के लिए करने लगे हैं। 


संत सम्मेलन के आयोजक जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्याभास्कर जी महाराज ने आए हुए अतिथियों का स्वागत सत्कार करते हुए। इस संत सम्मेलन को समाप्त करने की घोषणा की।  

 

बताते चलें कि कैकेईघाट स्थित कोशलेस सदन मंदिर के निकट रामानुजीयम के प्रांगण में चैत्र रामनवमी के नवरात्रि के पहले दिन से ही स्वामी जी द्वारा श्रीमद् भागवत कथा का रसास्वाद भक्तों को कराया जा रहा है। 


यहां आयोजित संस्कृत संस्कृत सम्मेलन संपन्न होने के बाद कोशलेस सदन के पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार विद्याभास्कर जी महाराज द्वारा पुना श्रोताओं को श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराया गया।

  

इस दौरान संस्कृत संत सम्मेलन में मणिरामदास जी की छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास, जानकीघाट बड़ास्थान के महन्त रसिकपीठाधीश्वर महंत जनमेजयशरण महाराज, रंग महल के महंत रामशरणदास, हनुमान गुफा के महंत हनुमानदास, जगतगुरु हरी प्रपन्नाचार्य जी महाराज, संस्कृत के विद्वान डॉ रामानंद शुक्ला,  साकेत महाविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ जनार्दन उपाध्याय, जगतगुरु रामानुजाचार्य रघुनाथ देसिक महाराज, महंत अर्जुनदास जी महाराज के अलावा बड़ी संख्या में संत और श्रोता मौजूद रहे। 

   

इस संस्कृत सम्मेलन में व्यवस्थापक की भूमिका पदमनाथ शुक्ल जी महाराज ने निभाई।

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