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करनैलगंज के श्रीराम लीला में बालि-सुग्रीव युद्ध व तारा विलाप के लीला का सजीव मंचन



रजनीश / ज्ञान प्रकाश

करनैलगंज(गोंडा)। करनैलगंज की प्रसिद्ध श्रीराम लीला मंचन में बुधवार को बालि-सुग्रीव युद्ध व तारा विलाप की लीला का मंचन हुआ। श्रीराम लीला को देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शकों की भीड़ उमड़ी।


लीला मंचन में माता सबरी के कहे अनुसार भगवान श्रीराम रिसिमुक पर्वत की ओर प्रस्थान करते है बाली के भय के कारण सुग्रीव अपने मंत्रियों के साथ रिसीमुक पर्वत पर निवास करते है। 


जिसमें हनुमान जी भी थे। भगवान श्रीराम जब पर्वत पर पहुंचते है तो सुग्रीव डर जाते है, कहीं बाली ने हमे मारने के लिए तो नही भेजा है। इसका पता लगाने के लिए सुग्रीव ने हनुमान जी को भेजा।


हनुमान जी पूर्णतया संतुष्ट होने के बाद दोनो एक दूसरे से गले मिलते है फिर दोनो भाईयो को अपने कंधे पर बिठा कर सुग्रीव के पास लाते है।

दोनो अपनी आपबीती सुनाते है सुग्रीव और श्रीराम अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता का वचन देते है। एक दूसरे को पूर्ण सहायता का वचन देते है। 


फिर भगवान श्रीराम सुग्रीव को बाली से युद्ध करने को कहते है। भीषण युद्ध के बाद सुग्रीव को युद्ध भूमि से भागना पड़ता है। क्योंकि बाली को वरदान था जो भी उससे युद्ध करने आयेगा उसका आधा बल बाली में आ जायेगा। 


युद्ध से भाग कर सुग्रीव श्रीराम को बहुत खरी खोटी सुनाते है। अंत में राम जी कहते है की तुम दोनो भाई एक जैसे हो मैं किसपर बाण चलाऊं, मेरे तीर चलाने से कही तुम्हे कोई हानि होती तो मेरे वचन का क्या होता मित्र, अंत में भगवान ने अपनी माला सुग्रीव के गले में डाल दी, ताकि पहचान हो सके।


 श्रीराम ने पुनः सुग्रीव को बाली से युद्ध करने को कहा, दोनो में युद्ध होता रहा और भगवान श्रीराम ने एक पेड़ के ओट में छिपकर बाली पर तीर चला दी और बाली वीरगति को प्राप्त हो गया। 


वीरगति का समाचार सुनते ही बाली की पत्नी तारा विलाप करने लगी। उधर सुग्रीव का लक्ष्मण के हाथो राजतिलक कर पंपापुर का राजा बना दिया और बाली के पुत्र को अंगद को युवराज बना दिया। लीला मंचन के दौरान भारी संख्या मरण दर्शक मौजूद रहे।

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