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प्रतापगढ़:बिना दरवाजे के खुली झोपड़ी में गुजर बसर करने को मजबूर 85 वर्षीय वृद्धा



वृद्धा पेंशन अथवा किसी तरह की सरकारी सहायता से वंचित

वेदव्यास त्रिपाठी 

खबर प्रतापगढ़ से है जहां करोड़ों, अरबों के सरकारी धन का बंदरबांट करने वाले गिरोहों, जनप्रतिनिधियों एवं तथा कथित समाज सेवियों किसी का भी दयनीय स्थिति में जी रहे लोगों पर ध्यान नहीं जाता है। 


जंहा अपात्र लोग कुछ धन खर्च कर दलालों के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ उठा लेते हैं वंही पात्र व्यक्ति एक अदद आवास के लिए तरसता है। 


ऐसा ही मामला अचलपुर कादीपुर में एक खुली झोपड़ी में किसी तरह बसर कर रही 85 वर्षीय वृद्धा पूनम देवी का है। पूनम देवी के पति को स्वर्गवासी हुए लगभग 32 वर्ष हो गए। तब से आज तक पूनम देवी ने लोगों के घरों में काम कर मेहनत मजदूरी के जरिए अपना जीवन निर्वाह करती रही। 


पूनम देवी के एक पुत्र सुरेश कुमार हरिजन (उम्र 40 वर्ष) है वो भी चारपाई वगैरह बीनकर किसी तरह जीवन यापन कर रहा है। 


उल्लेखनीय ये है कि इतनी गरीबी व कष्ट में भी वृद्धा पूनम देवी में किसी तरह का लालच नहीं है वह महान सोच की महिला हैं। वह इस उम्र में भी लोगों के घरों में जाकर बच्चों की मालिश वगैरह करती हैं। 


काम कराने के बदले जब लोग उन्हें सौ/पचास रुपए देने लगते हैं तो पूनम देवी कहती हैं कि इतना ढेर के पैसा काहे देत अहा भैया, दस/बीस रुपिया दई देय्या बस, का करब इतना रुपिया लइके। 


" इस तरह के संतोषी लोग आज के जमाने में ढूंढ़ने पर भी नही मिलेंगे। मजदूरों को कितनी भी मजदूरी दे दी जाए लेकिन उन्हें कम ही लगता है। पूनम देवी वैसे तो अशिक्षित हैं किन्तु उनकी बातों में जो नितिगत समझदारी है वह पढ़े लिखे लोगों को पानी पानी कर देता है। वह चरित्र से एक महान महिला हैं। 


क्षेत्र के निवासी उत्कर्ष श्रीवास्तव राजन जो कि अध्यापक व कवि हैं उन्होंने मुझे पूनम देवी के बारे में बहुत सी बातें बताई तो मेरे मन में इस वृद्ध महिला से मिलने की तड़प जाग उठी। 


चिंतनीय यह है कि ऐसे दयनीय स्थिति में जी रहे महान सोच के लोगों के प्रति भी समाज की संवेदना मर गई है।

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