Dollar's rule will end, the power of Indian rupee will be seen all over the world: Economist 'Doctor Doom'
उमेश तिवारी
दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी ने 2008 में आई वैश्विकी मंदी की सटीक भविष्यवाणी की थी और इस कारण अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने उन्हें 'डॉक्टर डूम' की उपाधि दी थी। उनका कहना है कि भारतीय रुपया आने वाले समय में नया डालर बन सकता है।
दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी का कहना है कि भारतीय रुपया आने वाले समय में नया डालर बन सकता है। एक आर्थिक अखबार को दिए इंटरव्यू में रूबिनी ने कहा है कि भारतीय रुपया डालर की जगह लेने की ताकत रखता है।
नूरील रूबिनी वही अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने 2008 में आई वैश्विकी मंदी की सटीक भविष्यवाणी की थी और इस कारण अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने उन्हें ‘डॉक्टर डूम’ की उपाधि दी थी। इस प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने अंग्रेजी बिजनेस अखबार ईटी नाउ को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘कोई भी यह देख सकता है कि भारतीय अपनी जिस मुद्रा रुपये के जरिए दुनिया के साथ होने वाले कारोबार को करता है वो रुपया भारत के लिए व्हिकल करेंसी बन सकता है। यह (भारतीय रुपया) एकाउंट की एक यूनिट हो सकता है, यह पेमेंट का साधन हो सकता है। यह स्टोर आफ वैल्यू भी बन सकता है। निश्चित रूप से, समय के साथ रुपया दुनिया में ग्लोबल रिजर्व करेंसी की डायवर्सिटी में से एक बन सकता है।
अमेरिकी डालर की घट रही ताकत
नूरील रूबिनी ने इसके साथ कहा कि कुल मिलाकर समय के साथ डी-डालराइजेशन की प्रक्रिया होगी। उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका का हिस्सा 40 से 20 फीसदी तक गिर रहा है। रूबिनी ने कहा, ‘अमेरिकी डालर के लिए सभी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय और कारोबारी लेनदेन के दो तिहाई होने का कोई मतलब नहीं है। इसका एक हिस्सा जियो-पॉलिटिक्स है।
अर्थशास्त्री ने इसके साथ ही दावा किया कि अमेरिका ‘राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के उद्देश्यों के लिए डालर को हथियार बना रहा है।
‘डालर की स्थिति खतरे में’
रूबिनी ने इससे पहले इस महीने की शुरुआत में फाइनेंशियल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि दुनिया की मुख्य मुद्रा के रूप में अमेरिकी डालर की स्थिति खतरे में है। अपनी गंभीर भविष्यवाणियों की सटीकता के लिए प्रसिद्ध रूबिनी ने कहा था, ‘भले ही अभी तक कोई अन्य मुद्रा नहीं है जो अमेरिकी डालर को उसके पायदान से नीचे गिराने की क्षमता रखता हो, लेकिन ग्रीनबैक (डालर) चीनी युआन के खिलाफ अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त तेजी से खो रहा है।
रूबिनी ने इसके साथ ही कहा कि मध्यम अवधि में भारत में 7 प्रतिशत की वृद्धि दिखने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘भारत की प्रति व्यक्ति आय इतनी कम है कि वास्तविक सुधार के साथ, निश्चित रूप से सात प्रतिशत संभव है और ये 8 प्रतिशत से भी अधिक हो सकती है। लेकिन आपको और भी कई ऐसे आर्थिक सुधार करने होंगे जो उस विकास दर को हासिल करने के लिए ढांचागत हों। और अगर आप इसे हासिल कर लेते हैं, तो आप इसे कम से कम कुछ दशकों तक बनाए रख सकते हैं। लेकिन यह सब नीतियों पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
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