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गोंडा:कौन देगा हमें इंसाफ बताओ तो सही ? पढ़े यह दर्द भरी दास्तां



अर्पित सिंह 

गोण्डा । कौन देगा हमें इंसाफ बताओ तो सही, हाथ जब खून में मुंसिफ के रंगे है यारों। ये शेर विकास खण्ड झंझरी के ग्राम पंचायत लक्ष्मनपुर जाट के मजरा पजावा निवासी राम चंदर पर सटीक बैठता है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समाज के आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ पहुँचाने के दावों पर उनके ही बनाये नियम और कानून बाधा बनकर खड़े दिखाई दें रहे हैं। इन्ही नियमों के बंधन के चलते एक साठ वर्षीय नेत्रहीन बुजुर्ग को जहाँ भविष्य में मिलने वाली सुविधाओं से विरक्त कर दिया गया वहीं मिल रहे नेत्रहीन दिव्यांग पेंशन को भी बंद करा दिया गया। खास बात तो ये है की इस नेत्रहीन बुजुर्ग के दर्द को कोई अधिकारी अथवा कर्मचारी समझने को अब तैयार ही नहीं है।

नेत्रहीन रामचन्दर का दर्द प्रधान विन्देश्वरी प्रसाद पाल ने महसूस किया परन्तु सिस्टम से हार कर वे भी इस बुजुर्ग की कोई मदद नहीं कर पाये। ज़ब मीडिया कर्मियों की टीम नेत्रहीन बुजुर्ग का हाल और परेशानियों को समझने उनके फूस के बने आवास पर पहुंची तो नेत्रहीनता और बड़ी उम्र के बाद भी रामचंदर टटिया बनाते नज़र आये। बातचीत के दौरान बुजुर्ग रामचंदर ने बताया की उनको पिछले कुछ वर्षों से मिल रही नेत्रहीन पेंशन आधार न बनने के कारण बंद हो गई। आधार न बन पाने का कारण उन्होंने अपनी नेत्रहीनता और अंगूठा न लगना बताया। उन्होंने बताया कि पेंशन तो बंद ही हो गई और इसी के साथ शासन से मिलने वाली अन्य किसी भी सुविधा के मिलने की आस भी समाप्त हो गई। राशनकार्ड में भी रामचंदर का नाम नहीं जुड़ सका है।

         बेहद गरीबी में जीवनयापन करने वाले नेत्रहीन बुजुर्ग रामचंदर के लिए मिलने वाली पेंशन के चंद रुपयों का मूल्य कितना था, ये उनके अतिरिक्त शायद ही कोई और समझ पाए। पेंशन के बिना उनका जीवन कितना दुरूह हो गया है इसका अंदाजा सिर्फ वही लगा सकते हैं। ये तो मात्र बानगी है, इसी तरह न जाने कितने ऐसे लोग जनपद में हैं जिनके बुजुर्ग होने के कारण उनका अंगूठा नहीं लग पा रहा है और जिसके चलते उन्हें किसान सम्मान निधि से और शासन की विभिन्न योजनाओं के लाभ से वंचित रखा जाता है। उप निदेशक कृषि प्रेम कुमार ठाकुर अंगूठा न लगने वाले पात्र किसानों को यह कहकर भगा देते हैं कि जब अंगूठा नहीं लगता तो वे क्या कर सकते हैं। इसी तरह सभी अधिकारी और कर्मचारी बिना जहमत उठाए हुए ऐसे पात्रों को टरका देते हैं और पीड़ित कार्यालय के चक्कर काट कर थक हार कर निराश हो जाता है।

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