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बस्ती:ह्यूमन सेफ लाइफ फाउंडेशन ने चलाया मासिक स्वच्छता अभियान



शिवेश शुक्ला 
बस्तीः स्वास्थ्य जागरूकता एवं समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दे रहे ह्यूमन सेफ लाइफ फाउण्डेशन की ओर से मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। 28 मई तक चलने वाले इस अभियान में फाउण्डेशन की महिला विंग अधयक्ष ज्योति श्रीवास्तव के नेतृत्व में वालेण्टियर्स महिलाओं को मासिक धर्म के बारे में जागरूक कर रही हैं। इसे फाउण्डेशन ने नारी हिम्मत अभियान नाम दिया है।
ज्योति श्रीवास्तव ने कहा मासिक धर्म न हो तो कोई महिला मां नही बन पायेगी, लेकिन वही महिला जब सास बन जाती है तो बहू को अछूत समझने लगती है।
मासिक धर्म के वक्त महिलाओं को रसोई, पूजा घर और तरह तरह के आयोजनों से वंचित कर दिया जाता है। देश में तमाम परिवर्तन हुये लेकिन इसको लेकर अभी लोगों की सोच नही बदली। हर महिला को मासिक धर्म वाली महिलाओं को अछुत, अपवित्र समझने से पहले ये जरूर सोचना चाहिये कि मासिक धर्म ही वह प्राकृतिक उपहार है जिसकी बदौलत उन्हे मातृत्व का सुख मिला है। सचिव प्रीती नागरिया ने कहा पीरियड्स के वक्त महिलाओं को कोई संकोच और शर्म नही करनी चाहिये। कठिन वक्त में उन्हे धैर्य और संयाम से काम लेना चाहिये। 


उपाध्यक्ष कनक चांदवानी ने कहा मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अछूत समझने का कोई वैज्ञानिक आधार नही है। बावजूद इसके समाज के ठेकेदार महिलाओं को ऐसे दिनों में अपवित्र और अछूत मानते हैं। ये दकियानूसी ख्याल बदलने होंगे। रचना श्रीवास्तव ने कहा कि केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल के अंदर की महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गयी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में बहाल कर दिया। तमाम जागरूकता कार्यक्रमों तथा बदलावों के बावजूद समाज की सोच नही बदली, महिलाओं को आज भी पीरियड्स के वक्त उसी तरह समझा जाता है जैसे 50 साल पहले समझा जाता था। 

प्रियंका गुप्ता ने कहा सोशल मीडिया के जरिये 01 मई से 28 मई तक चलने वाले इस अभियान के तहत लोगों को जागरूक किया जा रहा है जिससे महिलाओं के प्रति मासिक धर्म को लेकर लोगों की सोच बदले। वंदना ठाकुर, मोनिका, पूनम मिश्रा, कविता सक्सेना, रागिनी श्रीवास्तव आदि इस अभियान में सराहनीय योगदान दे रही हैं। फाउण्डेशन के चेयरमैन एवं रेडक्रकास ट्रेनर रंजीत श्रीवास्तव तथा जिलाध्यक्ष अपूर्व शुक्ला सहित सम्पूर्ण कार्यकारणी ने महिलाओं के इस अभियान को सराहा और कहा हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं। पुराने ख्यालात कहीं न कहीं लिंग भेद को प्रेरित करते हैं। इनसे हमें बाहर निकलना होगा।

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