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सूर्य षष्ठी का व्रत रहने से मिलता है संतान सुख एवं रोगों से मुक्ति: पं. आत्मा राम पांडेय

 


सूर्य षष्ठी :छठ पूर्व में सूर्य की आराधना का बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी माता को सूर्य देवता की बहन माना जाता हैं। कहा जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति तथा संपन्नता प्रदान करती हैं। छठ पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है।


छठ पूजा 2020 : पूजा के मुहूर्त

20 नवंबर छठ पर्व की शुरुआत होगी। 

इस दिन सूर्योदय – 06:39 पर होगा तथा सूर्यास्त – 17:21 पर होगा। 

 षष्ठी तिथि एक दिन पहले यानी 19 नवंबर को रात 2:40 से शुरू हो जाएगी और 20 नवंबर को रात 2:02 बजे तक रहेगी।

21 को को सुबह अर्घ्य देने का समय 6:39 मिनट  पर है।


छठ पूजा में किस दिन क्या होता है

  • पहला दिन (नहाय खाय, 18 नवंबर दिन बुधवार): व्रत रखने महिलाएं स्नान करने के बाद नए वस्त्र धारण करती हैं। शाम को शाकाहारी भोजन होती है।
  • दूसरा दिन (खरना, 19 नवंबर दिन गुरुवार): कार्तिक शुक्ल पंचमी को महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को भोजन करती हैं। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है।
  • तीसरे दिन (षष्ठी के दिन): इस दिन छठ पर्व का प्रसाद बनाया जाता है। अधिकांश स्थानों पर चावल के लड्डू बनाए जाते हैं। प्रसाद व फल बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा की जाती है। व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्य को अर्ग देने और पूजा के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाती हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा की जाती है।
  • चौथे दिन: सूर्योदय के समय भी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद बांट कर छठ पूजा संपन्न की जाती है। छठ पर्व को लेकर श्रद्धालुओं के द्वारा शकरकंद, लौकी एवं गन्ने की खरीदी की जा रही है। वहीं पर्व को देखते हुए बाजार में इनकी आवक बढ़ गई है।


छठ पूजा का महापर्व 18 नवंबर से शुरू होकर 21 नवंबर तक चलेगा। छठ पूजा बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रमुख त्योहारों में से एक है। दरअसल छठ माता की पूजा का महापर्व छठ दीपावली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य देवता की पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि छठ माता सूर्य देवता की बहन हैं। सूर्य देव की उपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और मन की सभी इच्छाएं पूरी करती हैं। छठ की शुरुआत नहाय खाय से होती है और 4 दिन तक चलने वाले इस त्योहार का समापन उषा अर्घ्य के साथ होती है। 4 दिनों में छठ पूजा से जुड़े कई प्रकार के व्यंजन, भोग और प्रसाद बनाए जाते हैं। व्रत रहने वालों को विधि-विधान के साथ सूर्य पूजा संपन्न करनी होती है।

डूबते सूर्य की होती है पूजा

.हिंदू धर्म में यह पहला ऐसा त्योहार है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। छठ के तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अर्घ्य वाले दिन शाम के पूजन की तैयारियां की जाती हैं। इस बार शाम का अर्घ्य 20 नवंबर को है। इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।

उषा अर्घ्य

चौथे दिन सुबह के सूर्योदय अर्घ्य के साथ छठ का समापन हो जाता है। सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा जाता है और इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है।

सूर्य पूजा का वास्तु में महत्व

सृष्टि का आधार ही सूर्य है, सूर्य की ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य ग्रह होता है,सूर्य धन-संपत्ति, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य और तेजस्व प्रदान करने वाला ग्रह है। वास्तु  की पूर्व दिशा यदि स्वस्थ्य और दोषमुक्त रहे तो उस भवन का स्वामी और उसमें रहे वाले सदस्य महत्वकांक्षी, सत्वगुणों से युक्त और उनके चेहरे पर तेज होता है। ऐसे भवन स्वामी को खूब मान-सम्मान मिलता है इसका कारण है सूर्य अपार शक्ति और तेज के देवता हैं।

सुबह के समय पूर्व दिशा से मिलने वाली किरणें अनंत गुणधर्म वाली ऊर्जा से युक्त होती हैं यही कारण है कि वास्तुविज्ञान में पूर्व व उत्तर की दिशाओं को अत्याधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि सूर्य से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा का मुख्य द्वार पूर्व दिशा ही है। वहीं उत्तर एवं ईशान से ब्रह्मांडीय ऊर्जा भी भवन में प्रवेश करती है। ये दोनों ऊर्जाएं मिलकर भवन के अंदर एक विशेष ऊर्जामंडल बनाती हैं जो भवन के निवासियों को सकारात्मक परिणाम देती हैं।

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