दुर्गा सिंह पटेल
मसकनवा गोंडा।पर्यावरण संरक्षण के नाम पर हर वर्ष लाखो करोड़ों रुपये खर्च करने का सरकार दावा कर रही है और कागजो में वन विभाग भी हजारों की संख्या में पौधरोपण करने का दावा भी करती रहती है लेकिन पौधारोपण के जमीनी हकीकत यदि देखना हो तो सीधे आप गोंडा के वन रेंज सादुल्लानगर में चले आइए यहाँ तो गड्ढो की खुदाई व अपने स्थान पर पौधे पहुँचने के बाद भी वन विभाग द्वारा इक्का दुक्का पौधे लगाकर बाकी बचे पौधे को सूखने के लिए रख दिया जाता है और खोदे गए गड्ढों में पौधे न लगने पर गड्ढे अपने दर्द बयां कर रहे हैं और कागजो में वन विभाग के अधिकारी अपनी पीठ थपथपा रहे है। कुछ पौधे लगे भी तो पौधे रोपने के बाद इनकी देखभाल के लिए किसी को फुर्सत ही नहीं मिली।यही कारण है कि पौधे बढऩे से पहले ही दम तोड़ देती है। कुछ इसी तरह के हालात गोंडा जिले के वन रेंज सादुल्लानगर के चमरुपुर बीट व मद्दों बीट से आया है लगभग 8 माह पूर्व तामझाम कर कुछ पौधरोपण किया गया। लेकिन विभाग के आलाधिकारियों को पौधों की देखरेख करने की फुर्सत ही नही है। यहां अनदेखी का आलम यह है कि इसमें से कई पौधे तो पनप ही नही सकें। पर हाँ इतना जरूर है पौधरोपण की आड़ में विभागीय अफसर जरूर पनप रहे है।
अधिकारियों ने पलटकर देखा तक भी नही
पौधरोपण विभागीय अफसरों के लिए कमाई का ऐसा जरिया बन गया है जो हींग लगे ना फिटकरी फिर भी रंग चोखा होय की कहावत को चरितार्थ कर रहा है। जिस प्रकार से सादुल्लनगर रेंज के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में कुछ पौधे रोपण करने के बाद जिस हालात में अभी पौधे है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाग के अफसरों को केवल पौधरोपण के दौरान पौधों की गिनती करने के बाद उसे भूला दिया जाता है। या यूं कहे कि पौधरोपण के बाद आलाधिकारी केवल कागजी घोड़े दौड़ाते है।
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