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BALRAMPUR...जब राम कथा सुनने के लिए ज्योतिषी बनकर पहुंचे भगवान शिव


अखिलेश्वर तिवारी
नौ दिवसीय संगीतमय रामकथा आरंभ।
शिव हैं श्री राम के अनन्य भक्त। वह दिन-रात भगवान श्री राम के पावन नाम का स्मरण करते रहते हैं और उसी नाम के बल पर काशी में मरने वाले जीवों को मुक्ति का उपदेश दिया करते हैं। जब उन्होंने सुना कि उनके इष्टदेव श्री राम का अवतार अयोध्या में हो गया, तब उनके हृदय में भगवान श्री राम के दर्शन की लालसा अत्यंत ही बलवती हो गई। वह सोचने लगे कि भगवान का दर्शन किस तरह हो?

अंत में उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने भगवान श्री राम के अनन्य भक्त काकभुशुण्डि को बुलाया और उन्हें साथ लेकर आंखों में प्रभु दर्शन की लालसा लिए अयोध्या के लिए चल पड़े। वह स्वयं एक ज्योतिषी के रूप में थे और काकभुशुण्डि उनके शिष्य के रूप में उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। इस प्रकार देवाधिदेव भगवान शिव और परम भागवत काकभुशुण्डि गुरु शिष्य के रूप में अयोध्या पहुंचे। उस समय वे मनुष्य रूप थे, इसलिए उन्हें कोई पहचान न सका।

बहुत देर तक इधर-उधर अयोध्या की गलियों में भ्रमण करने के बाद भी भगवान शिव को प्रभु के दर्शन का कोई उपयुक्त उपाय नहीं दिखाई दिया। आंखें अतृप्त-की-अतृप्त ही रहीं। अंत में भगवान शिव एक जगह बैठ गए और काकभुशुण्डि जी ने क्षण भर में एक बहुत ही प्रसिद्ध एवं अत्यंत अनुभववृद्ध ज्योतिषी के आगमन की बात अयोध्या के घर-घर में फैला दी।

लोग झुंड के झुंड ज्योतिषी के पास आने लगे और भगवान शंकर ने उन्हें हर प्रकार से संतुष्ट करके भेजना शुरू कर दिया। भला, त्रिकालज्ञ भगवान शिव से किसी के भूत, भविष्य और वर्तमान की बातें कैसे छिप सकती थीं। चारों ओर भगवान शिव की ज्योतिष मर्मज्ञता की ही चर्चा हो रही थी।

कुछ समय में ही ज्योतिषी की विशेषता की चर्चा राजभवन की दासियों ने सुनी और उन्होंने भी अपने बच्चों के भविष्य की जानकारी ज्योतिषी महाराज से प्राप्त की। फिर भगवान शिव के भाग्योदय का समय आ गया। शीघ्र ही दासियों के माध्यम से राजभवन में कौशल्या अम्बा तक प्रकांड ज्योतिषी के आगमन का समाचार पहुंच गया। जल्दी ही भगवान शिव को सम्मान के साथ कौशल्या के महल में दासियों के द्वारा बुलवाया गया।

भगवान शिव के आनंद का तो पारावार ही न रहा। जब उन्होंने सर्वतंत्र-स्वतंत्र प्रभु को कौशल्या अम्बा की गोदी में बैठ कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए देखा तो उनके मुख से बरबस ही शब्द फूट पड़े :
व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद। सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या के गोद॥

भगवान शिव का राजमहल में यथोचित सत्कार किया गया। सुमित्रा तथा कैकेयी भी अपने पुत्रों के साथ कौशल्या के भवन में पहुंचीं। सभी माताओं ने भगवान शिव के चरणों में रख कर बालकों को प्रणाम करवाया और उनसे अपने बच्चों का भविष्य बताने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने भगवान श्री राम तथा शेष तीनों भाइयों के सुयश का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने विश्वामित्र की यज्ञ-रक्षा, सीता स्वयंवर, ताड़का वध, राक्षसों के विनाश एवं भक्तों के कल्याण की खूब चर्चा की। प्रभु श्री राम के करार विंदों को तो वे छोडऩा ही नहीं चाहते थे परंतु इस सुख से वे शीघ्र ही वंचित कर दिए गए, क्योंकि भगवान को भूख लग रही थी और वह मातृस्तनों का पान करना चाहते थे। तदनन्तर शंकर जी रनिवास को आनंद में डूबा छोड़कर कैलाश लौट आए।
रामकथा को विस्तार देते हुए महाराज ने कहा कि महर्षि बाल्यमीकि ने देववाणी संस्कृत में रामायण की रचना की है। ऐसी मान्यता है कि बाल्मीकि ने कलयुग में संत तुलसीदास के रूप में जन्म लेकर लोकभाषा में राम चरित मानस की रचना की तुलसीकृत रामायण में भगवान शंकर राम के सर्वोत्तम प्रेमी है। स्वयं माता सती ने पार्वती रूप में अपना संदेह दूर करने भगवान शंकर से रामकथा सुनी। सती द्वारा भगवान राम की परीक्षा लेने का वृतांत सुनाते हुए कहा कि कभी भी अपने से बड़ों की परीक्षा नहीं लेना चाहिए यह सती परीक्षा का संदेश है। रामकथा महामोह रूपी महिषासुर को मारने वाली है राम कथा चंद्रकिरण के समान शीतलता प्रदान करने वाली है।
भ्रम और भक्ति में संदेह दूर करने का सर्वोत्तम उपाय दीर्घकाल तक रामकथा श्रवण करना है। रामकथा जीवन मुक्त विषयी साधक और सिद्ध सभी को इच्छित फल प्रदान करती है। रामकथा यमदूतों के मुख पर कालिख पोतने वाली जीवन मुक्ति देने वाली काशी के समान है। महाराज ने रामकथा की तुलना पुण्य सलिला गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा और मंदाकनी से की गई है।
शास्त्री ने रामकथा की महिमा बताते हुए कहा कि रामकथा कामधेनु है। रामकथा सुनने के अधिकारी श्रद्धालु मनुष्य ही है। रामकथा सठ, हठी, कामी, क्रोधी एवं ब्राम्हणद्रोही को नहीं सुनाना चाहिए। जब जन्म जन्मांतर के पुण्यों का उदय होता है तब रामकथा सुनाने और सुनने का संयोग बनता है। रामचरित मानस सरोबर के समान है। वेद पुराण अल्प ज्ञानियों के लिये खारे जल के समान है। साधु महात्मा इसे मीठे जल के रूप में सर्व ग्राही बना देते है। रामकथा याज्ञबल्लभ ने महर्षि भारद्वाज को सुनाया शंकरजी ने सती के साथ अगस्त मुनि राम कथा सुनी रामकथा रसिक शंकर कागभुसुंड से हंस बनकर सुनी। लक्ष्मीमणी शास्त्री ने सती प्रसंग सुनाते हुए दक्ष प्रजापति यज्ञ विध्वंश तथा सती के शरीर के इक्कावन खंडो के भारतवर्ष जगह-जगह गिरने पर शक्तिपीठो की स्थापना की जानकारी दी। मानस प्रभा नीलमणी शास्त्री ने भी मंत्रमुग्ध शैली में रामकथा महिमा का वर्णन किया। इस अवसर पर कथा श्रोत्राओं में निर्वतमान सांसद ददृन मिश्र,भाजपा नेता विनय प्रकाश त्रिपाठी ,भाजपा जिला मीडिया प्रभारी डीपी सिंह बैस, डा.भानू तिवारी, संध्या सिंह, रामनरेश त्रिपाठी, अद्मा सिंह, रेशम सिंह, मंटू सिंह, विनोद गिरी, मंगल प्रसाद, ललिता तिवारी, अमर शुक्ला, झूमा सिंह, पिंकी सिंह, सुभ्रा शुक्ला, गौरव, अजीत शुक्ला सहित तमाम श्रद्धालु उपस्थित थे ।
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