मनकापुर गोंडा: होली के अवसर पर संचार विहार आईटीआई के कर्मचारी मनोरंजन हाल में साहित्यकारों द्वारा होली की रचनाओं से श्रोताओं को सराबोर कर दिया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईटीआई के हिंदी समिति के सचिव अशोक वर्मा तथा संचालन राजेश मिश्रा ने किया। साहित्यकार चंद्रगत कुमार भारती ने अपनी प्रेमिका को याद करते हुए पढ़ा- आहट आते ही फागुन की, याद तुम्हारी आई है। आज तुम्हारी खुशबू जैसे, यह पुरवाई लाइ है।। मशहूर कवित्री इसरत सुल्ताना ने फागुन के रंगों में पूरे देश को रंगते हुए पढ़ा- हो रहा है, गगन फागुनी- फागुनी। चल रही है, पवन फागुनी- फागुनी।। प्यार से हिंदू-मुस्लिम गले मिल रहे। ये है मेरा वतन फागुनी- फागुनी।। गीतों के राजकुमार साहित्यकार डॉ धीरज श्रीवास्तव ने किसी के प्यार में यह गीत पढ़ा- छुआ दृष्टि ने देह को हुए गुलाबी गाल। बाहुपाश में भावना, विवश और बेहाल।। सुप्रसिद्ध गीतकार साहित्यकार डॉक्टर सतीश आर्य ने पढ़ा- लगी तुम्हारी याद, सताने फागुन में। बांस लगे बांसुरी बजाने फागुन में।। राजेश कुमार मिश्र ने होली के हुड़दंग को परवान चढ़ाते हुए पढ़ा- अजब मस्ती का आलम है, चढ़ी है भंग होली में। कई रंगों में रंगकर हो गए, दूर रंग होली में।। आरके नारद ने पढ़ा- ऊंच-नीच का भेद न जाने, गले लगाए सबको होली। दुखियारों को खुशियां बाटे, भर-भर देती सबको झोली।। राम लखन वर्मा ने पढ़ा- अलग-अलग कर देखो मत, जुड़े हुए हैं सारे तार। मुख्य अतिथि लखनऊ आकाशवाणी से पधारे साहित्यकार राहुल द्विवेदी स्मित ने पढ़ा- जीवन के इस रंगमंच ने, अब भी सार नहीं बदले हैं। केवल चेहरे बदल गए हैं, पर किरदार नहीं बदले हैं।। इसके अलावा अनुराग श्रीवास्तव, उमाकांत कुशवाहा, दिव्यांशु श्रीवास्तव सहित अन्य साहित्यकारों ने भी होली के रंगों में डूब कर अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। इसके साथ- साथ श्रोताओं को गुझिया भी खिलाया।
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