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ना झुकेगा रह दुश्वार मेरा कदम यारों , यही जानू की बिक सकता नहीं मेरा कलम यारों"

मशहूर शायर 'नाजिश प्रतापगढ़ी' की 37वीं बरसी पर विशेष

एस के शुक्ला

प्रतापगढ। गंगा जमुनी तहजीब के मुल्क हिंदुस्तान में स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक कवियों शायरों और साहित्यकारों ने अपने गीतों, कविता, नगमे और अपनी कलम के जरिए कौमी एकता और आपसी भाईचारे का संदेश देने का काम किया है। उसी में से एक थे मशहूर शायर जनाब नाजिश प्रतापगढ़ी । जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी शायरी राष्ट्रीय एकता और अखंडता तथा मातृभूमि पर कुर्बान कर दी। वह हमेशा हमेशा वह रहनुमा उसूल बनाते रहे जिस पर चलकर इंसानियत अपनी मंजिल को पा सके। उन्होंने अपने कौमी तराना में कहा था कि" हम एक थे, हम एक है, हम एक रहेंगे,भारत में किसी झगड़े उठने नहीं देंगे, गद्दारों के साजिश से खबरदार रहेंगे। मक्कारो के साए से भी बच बच के चलेंगे हर हाल में एक आवाज में मिलजुल कर कहेंगे हम एक रहेंगे, हम एक रहेंगे,हम एक रहेंगे । जिले के कस्बा प्रतापगढ़ सिटी के एक अमीर और इज्जतदार जमींदार शेख मोहम्मद असगर के घर में 22 जुलाई  1922 को जन्में जनाब नाजिश साहब का बचपन का नाम शेख मोहम्मद अहमद था। शायरी की दुनिया में उपनाम नाजिश प्रतापगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध हासिल की । नाजिश प्रतापगढ़ी को सन 1984 में उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उर्दू के सर्वश्रेष्ठ सम्मान गालिब सम्मान से नवाजा गया। 10 अप्रैल 1984 को लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में नाजिश ने अन्तिम सासे ली। उन्होने अपने देश की सेवा करने के लिए अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर देशभक्तों के साथ  आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और अपने गीतों और कविताओं के माध्यम से देश भक्तों की रगों में आजादी की भावना का संचार करते रहे। आपने लिखा कि" ना  झुकेगा रह दुश्वार मेरा कदम यारों , यही जानू की बिक सकता नहीं मेरा कलम यारों"।अपने भारतीय इतिहास के मशहूर  हस्तियों का सुंदर चरित्र चित्रण अपनी कविताओं में किया जैसे श्री रामचंद्र जी,महात्मा बुध, लक्ष्मण, श्रवण कुमार, सीता,राधा और हनुमान आपने देश की पौराणिक प्रचलित कथाओं में जिसमें चरित्र को मानव जगत की भलाई के लिए सही पाया उसे खास तवज्जो दी और उसकी प्रशंसा में कविता लिखा कि "छोटे भाई के लिए  राज को छोड़ा हमने, बड़े भाई के खड़ाऊ को भी पूजा हमने।  नाजिश प्रतापगढ़ी  एक सच्चे  देशभक्त इंसान थे और भारत मां को अपनी वास्तविक माता मानते थे । सन 1950 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त नाजिश का पूरा खानदान जिसने आपकी मां भाई और बहने भी थे भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए और यहां की सारी जमीन जायदाद और घर बेच दिया । पाकिस्तान की ऐसो आराम की जिंदगी का लालच देकर इनको भी वहां चलने के लिए जिद करने लगे किन्तु उस वक्त बेरोजगार नौजवान थे और अपने परिवार को चलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी अपनी मां और परिवार का पूरी तरह विरोध किया और पाकिस्तान की ऐसो आराम की जिंदगी को ठुकरा कर अपने वतन भारत में गरीबी में रह जाना मंजूर कर लिया। अपनी मां और परिवार से हमेशा के लिए रिश्ता खत्म कर दिया‌। यह आपके अंगूठे देश प्रेम की अनूठी मिसाल है, इसे सदियों तक याद रखा जाएगा। उन्होंने लिखा कि "बसर कर ली जिंदगी खुद अपने ही घर के जहन्नम में, मगर खैरात में   बाटी हुई जन्नत ना ली मैंने"। जनाब नाजिश के गीतों और कविताओं के प्रशंसकों में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री  पंडित जवाहरलाल नेहरू,इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, इंद्र कुमार गुजराल, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, अली सरदार जाफरी, फखरुद्दीन अली अहमद आदि रहे। आप जीवन भर सम्मान और अवार्ड प्राप्त करते रहे।

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