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अयोध्या की भांति मथुरा,काशी में होना चाहिए मंदिर का निर्माण :- जगतगुरु बल्लभाचार्य

 एस के शुक्ला 

प्रतापगढ़। हर धर्म,वर्ण का भगवान श्री राम ने सम्मान किया है किसी का त्याग उन्होंने  नहीं किया। मानव के भक्त का संबंध है। ईश्वर ने मानव की रचना की है, जाति की नहीं। भगवान श्रीराम ने निषादराज को गले लगाया, शबरी के हाथ से उसके जूठे बेर खाये। वानर भालू जैसे विभिन्न जीव जातियों को सखा बनाया। यह बातें श्रीराम कथा सत्संग समिति अष्टभुजा नगर द्वारा आयोजित श्रीराम कथा में अयोध्या से पधारे संत जगतगुरु रामानंदाचार्य बल्लभाचार्य स्वामी ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहीं। स्वामी जी ने कहा कि आज के परिवेश में जातीय संस्कृति की झलक प्रायः राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही चलाई जा रही हैं अन्यथा जब भगवान ने हमारे समग्र शरीर को एक साथ बनाया है।  चार वर्णों से निर्मित हमारा शरीर किसी भी क्रिया प्रतिक्रिया में संयुक्त रूप से कार्य निरुपित करता है तब किसी एक वर्ण को ही कैसे अधिक मान्यता दी जा सकती है। शरीर में मुख, भुजाएँ, वक्षस्थल, पैर अलग अलग हैं, सबके कार्य अलग हैं, परंतु कार्य परिणाम तो एकसाथ ही प्रगट होता है। इसलिये वर्तमान स्थिति में जाति वर्गीकरण की स्थितियाँ उचित नहीं हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि राजनीति स्तर पर जाति-धर्म का बटवारा नहीं होना चाहिए। भगवान ने मेरे शरीर का बंटवारा नहीं किया है। इस दौरान स्वामी ने हर वर्ग के उत्पत्ति पर विस्तृत रूप से वर्णन करते हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,शूद्र आदि जातियों के कर्मों पर भी प्रकाश डाला। अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ ही काशी और मथुरा मंदिर निर्माण के सवाल पर स्वामी जी ने कहा कि मथुरा और काशी का मंदिर आदि का नहीं वह अनादि का है।ऐसे में काशी और मथुरा में भी अयोध्या में श्रीराम मंदिर की तर्ज पर मंदिर निर्माण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में आचरण सिखाया जाता है। स्वामी करपात्री जी महाराज को भारत रत्न पुरस्कार दिया जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसे महान महापुरुष को इस पुरस्कार को दिया जाना नितांत आवश्यक है। जिन्होंने अपने जीवन काल भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ ही पूरे देश में प्रचार-प्रसार की। स्वामी जी ने कहा कि प्रतापगढ़ की पतित पावन भूमि भी अयोध्या के अंतर्गत आती है। यहां पर निवास करने वाले लोग भी अयोध्या के निवासी माने जाएंगे क्योंकि अयोध्या दस योजन में है।

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