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Sant kabir nagar सांथा ब्लॉक के मुशहरा में बकरीद के पहले पुलिस उठा ले जाती है बकरे, नहीं होने देती कुर्बानी



गांव में बकरीद के एक दिन पहले पुलिस कैद कर लेती है मुस्लिमों के बकरे, त्योहार बीत जाने के तीन दिन बाद करती है वापस
आलोक कुमार बर्नवाल
सन्तकबीरनगर। उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर का एक ऐसा है जहाँ गांव में बकरीद के पहले पुलिस सारे बकरे उठा ले जाती है, औऱ तीन दिन बाद बकरे वापस करती है और कुर्बानी नही करने देती है। यह परंपरा 2007 से चलती चली आ रही है।
बताएंगे जिले के मेंहदावल तहसील के एक मुसहरा नाम का एक गांव है । इस गांव की कहानी चौकाने वाली है। इस गांव में वाकई में मुस्लिमों को हिन्दू पक्ष के लोग बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने देते। बदले में कई साल से मुस्लिम पक्ष के लोगों की ओर से होलिका दहन भी रोक रखी गयी है। दोनों पक्षों में यूं तो सबकुछ ठीक है पर बकरीद और होलिका को लेकर एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं। मेंहदावल तहसील के हर्रेया गांव में पुलिस कुर्बानी के बकरों को बकरीद के पहले उठा ले जाती है और त्योहार बीत जाने पर तीन दिन बाद ही वापस करती है, पूरा खयाल रखा जाता है कि कहीं कोई बकरीद पर कुर्बानी न कर दे। पर ऐसा संतकबीरनगर के छोटे से मुसहरा गांव में ही होता है। सुनने में जरा अजीब जरूर लगेगा पर यही सच्चाई है।

2007 में कुर्बानी के बाद बिगड़े थे हालात :

मुसहरा गांव जिले के धर्मसिंहवा थानाक्षेत्र में पड़ता है। स्थानीय लोग के मुताबिक कि मुसहरा गांव में बकरीद पर कभी कुर्बानी नहीं हुई और यहां हमेशा से रोक लगी हुई है। तब इस तरह की कोई बात भी नहीं थी। 2007 में पूर्व विधायक ताबिश खां के कहने पर इस गांव में कुर्बानी कर दी गयी, इसके बाद तो वहां दो गुटों में जमकर बवाल हुआ। बात इतनी बढ़ी कि लूटपाट से लेकर आगजनी और तोड़फोड़ तक हो गयी। हिंसा को काबू मे करने के लिये पुलिस को बड़े पापड़ बेलने पड़े थे। उसी दिन से वहां कुर्बानी नहीं होती। बकरीद आने पर वहां सुरक्षा के लिहाज से पुलिस फोर्स ओर पीएसी तक तैनात कर दी जाती है।
पुलिस बकरीद के एक दिन पहले ही गांव में पहुंच जाती है और कुर्बानी के बकरों को कब्जे में लेकर गांव के पास बने एक मदरसे या सरकारी स्कूल में कैद कर देती है। त्योहार खत्म होने के तीन दिन बाद जाकर बकरे उनके मालिकों को वापस किये जाते हैं। इस मामले पर जिले के आलाधिकारियों की नजर रहती है । गांव में कोई हिंसा न हो इसके लिये पुलिस बकरों को ले आती है ताकि कुर्बानी पर लगी रोक बरकरार रहे।

मुस्लिम पक्ष की दलील :

गांव के मुस्लिम पक्ष के लोगों ने बताया कि वो कुर्बानी करना चाहते हैं, लेकिन पुलिस और गांव के हिन्दू पक्ष के लोग उन्हें बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने देते। इस मामले में पुलिस उनकी मदद करने के बजाय उन्हीं के बकरों को तीन दिन के लिये कैद कर लेती है। बकरीद खत्म होने के तीन दिन बाद बकरे वापस किये जाते हैं। पुलिस के कब्जे में भी मालिक को ही अपने बकरों की देखभाल करनी पड़ती है और इसकी कोई रसीद भी नहीं दी जाती कि लोग अपने बकरे पहचान सकें। हालांकि गौर करने वाली बात यह भी है कि गांव में 365 दिन में 362 दिन बाजार में बकरे काटकर वैसे ही बेचे जाते हैं, लेकिन इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। बस बकरीद के तीन दिन बकरे नहीं कटने दिये जाते, कोई चोरी-छिपे काट न ले इसके लिये बकरों का कैद कर लिया जाता है।

हिंदू पक्ष की दलील :

हिन्दू पक्ष का कहना था कि कोई नई परंपरा नहीं बनने दी जाएगी। दलील और दावा ये कि जब कुर्बानी गांव के बाहर एक जगह पर होती आयी है तो गांव में कुर्बानी क्यों की गयी। रही बात होलिका जलाने की तो उनके मुताबिक जब बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने दी गयी तो मुस्लिम पक्ष के लोगों ने होलिका जलाने वाली जमीन को कब्रिस्तान की भूमि बताकर विवाद पैदा किया और पिछले कुछ साल से होलिका जलनी भी रुक गयी।

तनाव लेकर आता है त्यौहार:

इस मामले से यहां दोनों समुदायों के लोगों में नफरत की ऐसी दीवार खड़ी हो चुकी है कि जिसे मिटा पाना बेहद मुश्किल है। ऐसा नहीं कि इसके लिये प्रयास नहीं किये गए, पर दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े हैं। सुलह की पूरी कोशिश की गयी पर वो लोग मानने को तैयार नहीं। इस गांव के लोगों ने जैसे अब तय कर रखा है कि एक दूसरे को त्योहार नहीं मनाने देंगे। कुल मिलाकर जरा सी आपसी सूझबूझ और सौहार्द्र की कमी के चलते इस गांव की खुशियां घरों में कैद होकर रह गयी हैं। खुशी के त्योहार भी अपने साथ तनाव लेकर आते हैं।

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